🪷आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे-💐
*_🥀 “💐कर्म और भाग्य” 💐 🥀_*
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*_एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों…?_*
*_एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया:_*
*_मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था- मैं राजा बना,किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ..?_*
*_इसका क्या कारण है ?_*
*_राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये.._*
*_अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोले- महाराज आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है..!_*
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*_राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा- कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार- (गरमा गरम कोयला) खाने में व्यस्त हैं.._*
*_राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा- महात्मा ने क्रोधित होकर कहा: “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं,वे दे सकते हैं।”_*
*_राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा.._*
*_राजा हक्का बक्का रह गया,दृश्य ही कुछ ऐसा था,वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे..!_*
*_राजा को महात्मा ने भी डांटते हुए कहा:” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास समय नहीं है…_*
*_आगे आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा.._*
*_वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है.._*
*_राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न..?_*
*_उत्सुकता प्रबल थी..! राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर उस गाँव में पहुंचा.._*
*_गाँव में उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही.._*
*_जैसे ही बच्चा पैदा हुआ- दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया.._*
*_राजा को देखते ही बालक हँसते हुए बोलने लगा…_*
*_राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है, किन्तु अपना उत्तर सुन लो- तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई राजकुमार थे..!_*
*_एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे।_*
*_अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली- हमने उसकी चार बाटी सेंकी.._*
*_अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहां आ गये..!_*
*_अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा-_*
*_“बेटा! मैं दस दिन से भूखा हूँ,अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो, मुझ पर दया करो, जिससे मेरा भी जीवन बच जाय।_*
*_इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले.. तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा आग..? चलो भागो यहां से..।_*
*_वे महात्मा फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही.._*
*_किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि..बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा- तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊंगा ?_*
*_भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये.. मुझसे भी बाटी मांगी…!_*
*_किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ …?_*
*_अंतिम आशा लिये वो महात्मा, हे राजन !.. आपके पास भी आये, /दया की याचना की..!_*
*_दया करते हुये ख़ुशी से आपने अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी।_*
*_बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और बोले.. तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा।_*
*_बालक ने कहा: “इस प्रकार उस घटना के आधार पर हम अपना अपना भोग,भोग रहे हैं और वो बालक मर गया।_*
*_धरती पर एक समय में अनेकों फल-फूल खिलते हैं,किन्तु सबके रूप,गुण,आकार-प्रकार, स्वाद भिन्न होते हैं ..।_*
*_राजा ने माना कि शास्त्र भी तीन प्रकार के हॆ–_*
*_ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र_*
*_जातक सब अपना किया,दिया,लिया ही पाते हैं।_*
*_🥀यही है “जीवन”