*दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम*-
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एक समय की बात है कि श्री गुरू नानक देव जी महाराज और उनके 2 शिष्य जिनमे एक का नाम बाला और दूसरे का नाम मरदाना था जो कि साथ साथ किसी गाँव मे जा रहे थे ,,,चलते चलते रास्ते मे उन्हें एक मकई का खेत आया । उनमे बाला स्वभाविक बहुत ही कम बोलता था मगर जो मरदाना था वो बात की नीँव उधेढता था।
,,,मकई का खेत देख कर मरदाने ने गुरू नानक जी महाराज से सवाल किया ,,,कि बाबा जी ईस मकई के खेत मे जितने दाने है क्या वो सब पहले से निर्धारित कर दिऐ गए है कि कौन किसका हक्कदार है और यह किसके मुँ ह मे जाऐंगे तो इस बात पर गुरू नानक जी महाराज ने कहाँ बिल्कुल मरदाना जो इस संसार मे कहीं भी कोई भी खाने योग्य वनस्पति है उस पर मोहर पहले से ही लग गई है और जिसके नाम की मोहर होगी वही जीव उसका ग्रास करेगा गुरू जी की इस बात ने मरदाने के मन् के अन्दर कई सवाल खड़े कर दिए मरदाने ने मकई के खेत से एक मक्का के भुट्टे को तोड़ लिया और उसका एक दाना निकाल कर हथेली पर रख लिया और गुरू नानक जी महाराज से यह पूछने लगा बाबा जी कृपा करके आप मुझे बताए के इस मक्का के दाने पर किसका नाम लिखा है ,,,इस पर गुरू नानक जी महाराज ने जवाब दिया के इस दाने पर एक मुर्गी का नाम लिखा है ,,,मरदाने ने गुरू जी के सामने बड़ी चालाकी दिखाते हुए मकई का वो दाना अपने मुँह मे फेंक लिया और गुरू जी से कहने लगा कि कुदरत का यह नियम तो बढ़ी आसानी से टूट गया
मरदाने ने जैसे ही वो दाना निगला वो दाना मरदाने की श्वास नली मे फँस गया ,,,,,अब मरदाने की हालत तीर लगे कबूतर जैसी हो गई मरदाने ने गुरू नानक देव जी को कहा कि बाबा जी आप जल्दी कुछ कीजीए नही तो मै मर जाउंगा ,,,गुरू नानक देव जी महाराज ने कहा मरदाना जी मै क्या करू कोई वैद्य या हकीम ही इसको निकाल सकता है पास के गाँव मे चलते है वहाँ किसी हकीम को दिखाते है ,,,मरदाने को लेकर वो पास के एक गाँव मे चले गए,,वहाँ एक हकीम मिला उस हकीम ने मरदाने की नाक मे नसवार डाल दी नसवार बहुत तेज थी नसवार सुंघते ही मरदाने को छींके आनी शुरू हो गई मरदाने के छीँकने से मक्का का वो दाना गले से निकल कर बाहर गिर गया जैसे ही दाना बाहर गिरा पास ही खड़ी मुर्गी ने झट से वो दाना खा लिया ,मरदाने ने गुरू नानक देव जी से क्षमा माँगी और कहा बाबा जी मुझे माफ कर दीजीए मैने आपकी बात पर शक किया था ।
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हम जीवों की हालत भी एसी ही है ,हम इस त्रिलोकी मे फँसे हुए अंधे कीढ़े है ,,,जो दर दर की ठोकरें खाते है । और हम खुद को बहुत ही होशियार इँसान समझते है ,,बड़े अच्छे भाग्य से हमें यह मनुष्य शरीर मिला है बड़े भाग्य से सेवा मिली सत्संग मिला और ईश्वर ने हम जैसे कीड़ों की जिम्मेदारी लेकर नाम दान की बख्शिश भी कर दी मगर क्या हमने बाबा जी का कहना माना क्या हमारे संशय खत्म हो गए ,,,बाबा जी ने हम अँधो को अपना हाथ पकड़ाया है और वो ईश्वर हम जीवों को सत्पुरूष से जरूर मिलाएगा ,,
,,हमे बिना किसी तर्क वितर्क, कैसे,,क्यु,,कहाँ को छोड़कर अपने गुरू का हुक्म मानना चाहिए ,,