आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे-
💐सुहागन की बिंदी 💐 ~~~~~~~~~~~~~
एक गांव मे गली के बाहर फेरीवाला आया हुआ था। जोकि कई तरह का सामान लेकर—बिंदिया, काँच की चूड़ियाँ, रबर बैण्ड, हेयर बैण्ड, कंघी, काँच के और भी बहुत सारे सामान उसके पास थे। वहाँ पर उसके आस-पड़ोस की औरतें उसे घेर कर खड़ी हुई थीं। तो वहां काफी देर तक एक बाबा गेट पर अपनी लाठी टेककर खड़े रहे। जैसे ही वहां से औरतों की भीड़ छँटी, बाबा अपनी लाठी टेकते हुए फेरी वाले के पास पहुँच गए और उस का सामान देखने लगे।शायद वे कुछ ढूँढ रहे थे। कभी सिर ऊँचा करके देखते, कभी नीचा। जो वे देखना चाह रहे थे, वह उन्हें दिख नहीं रहा था। जव परेशान बाबा को फेरी वाले ने देखा तो उसनें पूछा—“कुछ चाहिए था क्या बाबा आपको ?”
पर बाबा ने सुनकर अनसुना कर दिया। धीरे-धीरे लाठी टेकते हुए फेरी के ही चक्कर लगाने लगे। कहीं तो दिखे वो सामान जो वे देखना चाह रहे हैं। फेरी वाले ने दोबारा पूछा—“बाबा आपको कुछ चाहिए था क्या ?”
अब की बार बाबा ने फेरीवाले से कहा –“हाँ बेटा!” चाहिए था तो फेरी वाले ने कहा कि बाबा आपको क्या चाहिए ?– आप बताओ मुझे, मैं ढूँढ कर देता हूँ।” आपको-
“मुझे ना–वो बिंदिया चाहिए थी।”
“बिंदिया क्यों चाहिए बाबा ?”
बाबा ने अम्मा की तरफ इशारा करते हुए बताया—“अरे! उस मेरी पत्नी के लिए चाहिए।
बाबा का जवाब सुनकर फेरीवाला हँस दिया। “किस तरह की बिंदिया चाहिए?” बाबा,
“बड़ी-बड़ी गोल बिंदिया चाहिए। बिल्कुल लाल रंग की।”
फेरीवाले ने बिंदिया का पैकेट निकाल कर दिया–यह देखो बाबा, ये वाली चाहिए?”
“अरे, नहीं–नहीं, ये वाली नहीं।बिल्कुल लाल सी।”
फेरीवाले ने वो पैकेट रख लिये और दूसरा पैकेट निकाल कर दिखाया–“बाबा ये वाली ?”
“अरे तुझे समझ में नहीं आता क्या? बिल्कुल लाल-लाल बिंदिया चाहिए।”
फेरी वाले ने सारे पैकेट निकाले और फेरी के एक तरफ फैला कर रख दिए–आप खुद ही देख लो बाबा! कौन सी बिंदिया चाहिए?”
बाबा ने अपने काँपते हाथों से बिंदियों के पैकेट को इधर-उधर किया और उसमें से एक पैकेट निकाला–“हाँ-हाँ, ये वाली।”
बाबा के हाथ में बिन्दी का पैकेट देखकर फेरीवाला मुस्कुरा दिया। बाबा ने तो मेहरून रंग की बिन्दी उठाई थी। बाबा ने कहा ये
“कितने की है ?” फेरीवाले ने कहा ये
“दस रुपये की है बाबा।”
“अच्छा ! कीमत सुनकर बाबा का दिल एकदम बैठ गया। फिर भी बोले–“ठीक है, अभी लेकर आता हूँ।”
बाबा लाठी टेकते हुए पीछे मुढ कर जाने लगे। तब तक घर में से बहू आती दिखी। उसे देखकर बाबा बोले–“अरे बहू, ज़रा दस रुपये तो देना। मुझे फेरी वाले को देने हैं।”
“अब क्या खर्च करा दिया आप लोगों ने ?” बहू ने लगभग चिल्लाते हुए ऊँचे स्वर मे कहा-
तो बाबा ने उत्तर दिया कि
“अम्मा के लिए बिंदिया खरीदी थी।उसकी बिंदिया खत्म हो गई थी। कई बार बोल चुकी है”—बाबा ने धीरे से कहा।तो बहू ने चिल्लाकर कहा-
“बस-बस, आप लोगों को और कोई काम तो है नहीं।बेवजह का फिजूल खर्चा कराते रहते हैं। अम्मा सत्तर साल की हो चुकी हैं तोअम्मा क्या अभी भी बिंदिया लगाएगी ? इस उम्र में भी न जाने क्या-क्या शौक करती हैं ?” यह सुनकर बाबा वोले
“देख बेटा, बात शौक की नहीं है। अम्मा भी एक सुहागन स्त्री है, इसलिए उसका मन नहीं मानता। मे तुझसे सिर्फ दस रुपये ही तो माँग रहा हूँ। अन्दर जाकर तेरे पैसे तुझे दे दूँगा।” बहू फिर जोर से चिल्लाकर वोली आप कहाँ से दे दोगे ? जो आप पैसे देंगे, वह भी तो मेरे पति की ही कमाई है। मेरे पास कोई पैसे नहीं हैं।”
इतना कहकर बहू बड़बड़ाती हुई अन्दर आ गई। अम्मा ने खाट पर लेटे-लेटे ही बाबा को इशारा किया।
बाबा ने पलटकर बिन्दी फेरी वाले को वापिस लौटा दी और लाठी को टेकते हुए अम्मा के पास आकर बैठ गए। बाबा ने देखा अम्मा की आँखों में आँसू थे। आँसुओ को देखकर बाबा बोले-
“माफ करना पार्वती! मैं तेरी एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर पाया।” तो अम्मा बोली”रहने दो जी, बेचारी बहू भी परेशान हो जाती होगी। काहे दिल पर ले कर बैठ जाते हो ? बिन्दी ही तो थी।”
“हाँ हाँ बिन्दी की ही बात तो थी। कौन सी हज़ारों रुपये की आ रही थी।” बाबा ने व्यंग्य से हँसते हुए कहा।
“बिन्दी ही तो लगानी है जी।
तो अम्मा ने कहा कि आप
एक काम करो, पूजा घर में से हिंगलू ले आओ। उसी से लगा देना। पर आज आप अपने हाथों से बिन्दी लगा दो।”
बाबा ने अम्मा की बात सुनी और फिर लाठी टेकते हुए पूजा घर में गये। थोड़ी देर बाद बाबा हाथ में हिंगलू लिए अम्मा के पास पहुँचे।
“लो पार्वती! उठो, मैं तुम्हें बिन्दी लगा देता हूँ।”
पर अम्मा में कोई हलचल न दिखी।
बाबा ने दोबारा कहा–“पार्वती, ओ पार्वती! सो गई क्या ? तेरी बड़ी इच्छा थी ना–बड़ी सी लाल बिन्दी लगाने की। ले देख, मैं हिंगलू ले आया हूँ। अब बड़ी सी लाल बिन्दी लगा दूँगा। पर तू बैठ तो सही।”
https://chat.whatsapp.com/BE3wUv2YB63DeY1hixFx55
पर अम्मा बिल्कुल शिथिल पड़ी हुई थीं। शरीर में कोई हलचल न थी। बाबा का दिल बैठ गया। वे हाथ में हिंगलू लिए अम्मा के पास ही बैठ गए। आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे, पर एक भी बोल न फूटा उनके मुंह से क्योंकि अम्मा जा चुकी थीं, हमेशा के लिए।
थोड़ी ही देर में वहां पर रोना-धोना मच गया। आस-पड़ोस के लोग आ गए। बेटे को बुलाया गया और अम्मा को अन्तिम यात्रा के लिए तैयार किया जाने लगा। अम्मा को नहला-धुला, सुहागन की तरह तैयार कर, अर्थी पर लिटा कर बाहर लाया गया।
बाबा ने देखा, अम्मा के माथे पर बड़ी सी लाल बिन्दी लगी थी। बाबा उठे और घर में गए। थोड़ी देर बाद बाहर आए और धीरे-धीरे अम्मा की अर्थी के पास गये। उन्होंने अम्मा के माथे पर से वह लगी हुई बिन्दी हटा दी। तो वहां पर उपस्थित जन बोले बाबा! आप यह क्या कर रहे हो ? अम्मा तो सुहागन थीं। आप अम्मा के माथे से बिन्दी क्यों हटा रहे हो ?”— साथ ही बेटे ने भी यही कहा। त़ो बाबा वोले
“बेटा ! उसका पति उसके लिये बिन्दी खरीदने की भी औकात नहीं रखता था, इसलिए मे इसे हटा रहा हूँ।”
ये सुनकर सब लोग अवाक रह गए । बहू शर्मसार हो गई। सब ने देखा– बाबा अपने हाथ में लाए हिंगलू से एक बड़ी सी लाल बिंदिया अम्मा के माथे पर लगा रहे हैं।
थोड़ी ही देर बाद बहू की चीत्कार छूट गई। बाबा भी अम्मा के साथ हमेशा-हमेशा के लिए लम्बी यात्रा पर रवाना हो गए थे।
मित्रों ! यह भावनात्मक, हृदय स्पर्शी कहानी बहुत कुछ सन्देश दे रही है। अपने समाज में सिर्फ 2-4 प्रतिशत बुजुर्गों की स्थिति ही परिवार में सम्मान जनक है। कहीं इसका मूल कारण संयुक्त परिवार का एकल परिवार में रूपान्तरण, नाते-रिश्तों की समाप्ति, धन लिप्सा की अंधी दौड़ एवं लड़के-लड़कियों का पढ़-लिख कर सब से अधिक जानकारी व बुद्धिमान होने का झूठा अभिमान, किताबी ज्ञान का होना परन्तु व्यवहारिक ज्ञान की कमी होना तो नहीं?
कृपया हम सभी एक छोटा सा प्रयास करें—“अपने घर के बुजुर्गों का उचित सम्मान” करें। सभी को एक दिन बूढ़ा होना ही है। माता-पिता के न रहने पर ही उनका महत्व मालूम पड़ता है। इसलिए पश्चिमी देशों का अनुसरण न कर हम अपनी भारतीय संस्कृति का अनुसरण करें-जय सियाराम
*।।जय जय श्री राम।।*
*।।हर हर महादेव।।*