*कृष्ण से पुत्र की चाहत*
**************************
अपने छ: छ: पुत्रों को आखों के सामने ही पत्थर पर पटक कर मरता देखने वाली वो अभागिन माता अभागी नही थी! जगत के तारण हार की जननी होने का गर्वित सौभाग्य यूं ही नहीं प्राप्त होता। संसार की माताओं….कृष्ण सा पुत्र चाहती हो तो देवकी सा धैर्य और साहस हृदय में अवतरित करना होगा तभी कोख में कन्हैया अवतरित होंगे!
ईश्वर जब समीप नही थे तब तक माया थी…माया का बंधन वो जंजीरें थी बेड़ियां थी….जब तक आप ईश्वर से दूर होते यही होता है, जैसे ही ईश्वर आए ईश्वर का सामिप्य मिला, माया के बंधन से निर्बंध हुए, बेड़ियां स्वतः टूटी और वसुदेव काली अंधियारी रात में मानो मृत्यु को बेधते उफनती यमुना में बह चले…संसार को पार लगाने वाले को पार लगाने चले!
उस रात अचानक ही गोकुल में न जाने क्यों मौलश्री महक उठी….पारिजात पुष्पों ने स्वतः उस अनजाने पथ पर बिछ कर उसे पुष्पित कर सजाया! रातरानी श्रृंगारित हो समर्पण को आतुर सी पगली बनी…गुलमोहर मानो स्वागत गीत गाता नाच उठा हो! भादो की उस बरसती रात मे…यमुना किनारे का वो बूढ़ा कदंब का पेड़ फिर से युवा होकर…आशा के गीतों में भीग उठा….! मिट्टी का कण कण पत्ते पत्ते…धूल धूसर…सम्पूर्ण प्रकृति धानी चुनर ओढ़ सोलह श्रृंगार किए अपने पालनहार के स्वागत में पलके बिछाए सोहर गाने लगी! सभी गैया के गले से घंटियों की सुंदर ध्वनि सृष्टि को तरंगित करने लगी…उन्हीं गैया के छोटे छोटे बछड़े चौंकती आंखों से टुकुर टुकुर उस राह को निहारने लगे जिस पथ से वो पथिक आने वाला था जो भविष्य के सभी पथिको का पथ प्रदर्शक था!
माता सात सात पुत्रों को जन्म देकर भी किसी को मन भर ना देख सकी…ना छाती से लगा सकी..ना दुलार सकी..ना ही अपने प्राण के टुकड़ों को एक बार चूम सकी! ईश्वर की मां होने का गौरव कभी सारे लौकिक सुख छीन लेता है। आंसुओं से अभिषिक्त कर के वासुदेव वसुदेव को सौंपा था! मानो कहते हुए ” जाओ जगत के तारण हार…संसार को आलोकित करने के लिए अभी से ही अंधेरे से लड़ना उसे छिन्न भिन्न करना आरंभ करो..”! मोह से कन्हैया का प्रथम युद्ध यही आरंभ हुआ.. जन्मते ही जननी से मोह भंग की सीख मिली! सत्य है कि प्रथम गुरु माता ही तो होती है। कन्हैया को जन्म के साथ ही वो ज्ञान मिला जो जीवन भर वो बांटते रहे!
अंधेरी निशा की सघनता उसकी दुरूहता में ही आशा की अमृत बूंदें छलकती है। पाप और अज्ञान के गहन अंधेरे को चीरने जगत प्रकाशक आ चुका था! पीड़ित प्रार्थना के असंख्य स्वरों ने एक बार फिर से ईश्वर को स्वर्गलोक से धरती के आंगन में खींच लाया था। जगत का तारणहार जगत में उस यम की बहन अभिमानिनी कालिंदी की उफनती लहरों पर..उस भयावह जल प्रलय में भी खिलखिला उठा था..!!
आश्रमों की यज्ञाग्नि के साथ…ऋषियों के मंत्रगान के साथ साथ हजार हजार कंठ गा उठे थे…
*हाथी घोड़ा पालकी…. जय कन्हैया लाल की.*
सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे