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आप सभी से निवेदन है कि आप दो मिनट का टाइम निकाल कर इस लेख को जरूर पढ़े …!
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ये बकवास नहीं है, सच्चाई है हर समाज की,

एक कटु सत्य …!
रिश्ते तो पहले होते थे, अब रिश्ते नही सौदे होते हैं, बस यहीं से सब कुछ गङबङ हो रहा है, किसी भी माँ-बाप मे अब इतनी हिम्मत शेष नही रही, कि बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से तय कर सकें …!
पहले खानदान देखते थे, सामाजिक पकङ और सँस्कार देखते थे, और अब …,

मन की नही तन की सुन्दरता, सरकारी नौकरी, दौलत, कार, बँगला, साइकिल, या स्कूटर वाला राजकुमार अब किसी को नही चाहिये, सब की पसंद कार वाला ही है, भले ही इनकी संख्या 10% ही हो …!

लङके वालो को लङकी बङे घर की चाहिए, ताकि भरपूर दहेज मिल सके, और लङकी वालो को पैसे वाला लङका,
ताकि बेटी को काम करना न पङे, नौकर चाकर हो, परिवार छोटा ही हो ताकि काम न करना पङे, और इस छोटे के चक्कर मे परिवार कुछ ज्यादा ही छोटा हो गया है,
पहले रिश्ता जोड़ते समय लड़की वाले कहते थे, कि मेरी बेटी घर के सारे काम जानती है, और अब शान से कहते हैं हमने बेटी से कभी घर का काम नही कराया, यह कहने में लोग शान समझते हैं,
इन्हें रिश्ता नही बेहतर की तलाश है, रिश्तों का बाजार सजा है गाङियों की तरह, शायद और कोई नयी गाङी लांच हो जाये, इसी चक्कर मे उम्र बढ रही है,
अंत मे सौ कोङे और सौ प्याज खाने जैसा है, अजीब सा तमाशा हो रहा है, अच्छे की तलाश मे सब अधेङ हो रहे हैं …!

अब इनको कौन समझाये कि एक उम्र मे जो चेहरे मे चमक होती है, वो अधेङ होने पर कायम नही रहती, भले ही लाख रंगरोगन करवा लो ब्यूटीपार्लर मे जाकर …!

एक चीज और संक्रमण की तरह फैल रही है, नौकरी वाले लङके को नौकरी वाली ही लङकी चाहिये, अब जब वो खुद ही कमायेगी तो क्यों आपके या आपके माँ बाप की इज्जत करेगी …?

खाना होटल से मँगाओ या खुद बनाओ, बस यही सब कारण है आजकल अधिकाँश तनाव के, एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नही रहा, उपर से सहनशीलता भी बिल्कुल नहीं, इसका अंत होता हैं आत्महत्या और तलाक,
घर परिवार झुकने से चलता है, अकङने से नहीं …!

जीवन मे जीने के लिये दो रोटी और छोटे से घर की जरूरत है, बस और सबसे जरुरी जरूरत है आपसी तालमेल और प्रेम प्यार की,
लेकिन आजकल बङा घर व बङी गाङी ही चाहिए चाहे मालकिन की जगह दासी बनकर ही रहे, आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं, कपङा धोने के लिए वाशिँग मशीन, मसाला पीसने के लिये मिक्सी, पानी भरने के लिए मोटर, मनोरंजन के लिये टीवी, बात करने मोबाइल, फिर भी असँतुष्ट …,

पहले ये सब कोई सुविधा नहीं थी, मनोरंजन का साधन केवल परिवार और घर का काम था, इसलिए फालतू की बातें दिमाग मे नहीं आती थी, न तलाक न फाँसी, आजकल दिन मे तीन बार आधा आधा घँटे मोबाइल मे बात करके, घँटो सीरियल देखकर, पार्लर मे समय बिताकर समय व्यतीत किया जाता हैं …!

जब ये जुमला सुनते हैं कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती, तो हंसी आ जाती है, बहनो के लिये केवल इतना ही कहूँगा, की पहली बार ससुराल हो या कालेज लगभग बराबर होता है, थोङी बहुत अगर रैगिँग भी होती है तो सहन कर लो, कालेज मे आज जूनियर हो तो कल सीनियर बनोगे, ससुराल मे आज बहू हो तो कल सास बनोगे …!

समय से शादी करो, स्वभाव मे सहनशीलता लाओ, परिवार में सभी छोटे-बङो का सम्मान करो, ब्याज सहित वापिस मिलेगा, आत्मघाती मत बनो,
जीवन मे उतार चढाव आता है, सोचो समझो फिर फैसला लो, बङो से बराबर राय लो, उनके उपर और ऊपर वाले पर विश्वास रखो, विचार करें की हम कहाँ से कहाँ आ गये …!

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