कलयुग के आगमन से पहले. की जानकारी-
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*कलयुग जब आगमन की ओर था तो सभी प्रमुख देवी देवताओं ने आर्यावर्त के अलग अलग स्थान चुन लिए !*
भोले बाबा ने कैलाश चुन लिया तो श्री हरि क्षीर सागर चले गये ।
माता रानी ने बाण गंगा कटरा कश्मीर चुन लिया…….
सबने अपनी अपनी पसंद का निवास स्थान चुन लिया ।।
इधर रामायण काल महाभारत काल दोनों युद्धों के प्रणेता श्री मारुति नंदन इसी धरा पर विराजमान रह गये…वो भी सशरीर।
इसके पीछे कारण था की उनको उन सभी लोगों से प्रेम था जिनको प्रभु श्री राम प्रिय थे। हनुमान जी को राम कथा सुननी थी, यह धरती पर ही सुगमता से उपलब्ध थी ..
और पुरातन काल के विद्वजनों नगरपालको परिषदों ने इस बात का विशेष ध्यान भी रखा आर्यावर्त के लगभग सभी “परगना” (परगना दस बारह ग्राम/नगर के समूह को कहते हैं) में हनुमान जी मंदिर बनवाए… हर बड़े शहर मे भव्य “हनुमान मंदिर ” बने जो हनुमानगढ़ी नाम से जाने गये।
श्री हनुमान आज भी इस भूमि पर विराजमान है कई बार मैने व्यक्तिगत रूप से इस बात का आभास किया है…
और वैसे भी आज आप को यदि सनातन के परचम बुलंद करने हैं तो हनुमान मंदिर पर एकत्रित होना सीखिए।
मंगल वार शनिवार किसी भी मन्दिर, या घर में ही सुंदरकांड पाठ करना सीखिए। नित्य संकीर्तन कीजिए
लड़ने की कुशलता, आक्रामकता, निर्णय, का पूरा पुराण हैं श्री हनुमान का जीवन और उनकी जीवन शैली…. भगवान जंगल मे सबसे पहले जिस योद्धा से मिले वो हनुमान ही थे…
हनुमान को केवल सीता माता की खोज करने के लिए कहा गया था, परंतु उनने अपने स्वामी की शक्ति का ट्रेलर पूरी लंका को दिखाया और एक ही दिन में लंका को यह अहसास करा दिया था की तुम्हारा पाला किससे पड़ने वाला है…
श्री राम की पुरी सेना की भर्ती भी हनुमान जी ने किया था…
*तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा*
*कहा चलैं कर करहु बनावा ।।*
*अब बिलंबु केहि कारन कीजे*
*तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजै।।*
राम लखन के लिए खगराज गरुण को लाना था या सौमित्र के लिए सजीवन बूटी वो हर काम हनुमान जी ने एक कुशल सेनानायक की भांति किया था…….
हनुमान जी ने कभी भी भेदभाव नही किया था चाहे स्त्री हो या पुरूष सभी दुष्टों को समान रूप से दंडित किया था… उनने कालनेमी और लंकिनी मे कोई भेद नही किया था..
*मुठिका एक महाकपि हनी*
*रुधिर बमत धरनीं ठनमनी* ।।
हनुमान ने अपने स्वामी का कभी साथ नही छोडा चाहे वनवास के दुर्गम दिवस हों या रामराज्य का सुगम काल।
हनुमान जी मानव जीवन के लिए सदैव एक उदाहरण हैं।
अपने कर्मक्षेत्र मे यदि सफल होना चाहते हैं तो आप को हनुमान जी को आत्मसाध करना पड़ेगा।
सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे