आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे मायाधि पति श्रीकृष्ण और उनकी मायाइस लेख को पूरा पढने के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24💐💐💐💐💐

*मायाधिपति श्रीकृष्ण और उनकी माया*
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*सृष्टि के आरम्भ में परमब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण ने माया को* *अपने पास बुलाकर कहा कि मैंने संसार की रचना कर* *ली है अब इस संसार को चलाना तेरा काम है ।* *माया ने कहा–‘भगवन् ! मुझे स्वीकार है, किन्तु एक प्रार्थना है* ।’ *भगवान ने कहा–‘कहो, क्या प्रार्थना है?’*

*माया ने कहा–’प्रभु ! इस संसार को चलाने के लिए जिन* *आकर्षणों की आवश्यकता है, वह तो* *सब-के-सब आपके पास हैं, उनमें से एक-आध मुझे भी दें* *ताकि मैं जीवों को अपने जाल में फंसाकर रख सकूं ।’*

*भगवान ने कहा–‘बोलो क्या चाहिए ?’ माया ने कहा–‘प्रभु !* *आप आनन्द के सागर हैं, मेरे पास दु:ख के* *सिवाय क्या है ? कृपया आप उस आनन्द के सागर की एक बूंद मुझे भी दे दें ताकि मैं उस एक* *बूंद का रस संसार के इन समस्त जीवों में बांटकर उन्हें* *अपने वश में रख सकूं, अन्यथा वे मेरी बात नहीं मानेंगे और सीधे आपके दरबार में पहुंच जाएंगे ।’*

*भगवान ने अपने आनन्द के सागर की एक बूंद माया को देकर कहा—‘जा, इस बूंद को पांच* *भागों में विभक्त करके मनुष्यों में बांट देना ।’ प्रसन्न होकर माया ने भगवान से* *कहा–‘प्रभु ! आप निश्चिन्त रहें, आपके द्वारा सौंपे गए कार्य में कोई विघ्न नहीं आने दूंगी ।’*

*माया ने आनन्द रूपी सागर की बूंद को पांच भागों–रूप, रस* *गन्ध, शब्द और स्पर्श में विभक्त कर संसार में फैला दिया । इसलिए संसार में* *सुख और आनन्द प्राप्ति का इन पांच स्थानों के अलावा और कोई स्थान नहीं है ।* *ये पांच गुण–रूप,रस गन्ध,शब्द और स्पर्श क्रमश: हमें अग्नि,जल,पृथ्वी,आकाश और वायु से प्राप्त होते हैं ।*

*माया के पांच स्थान हैं पांच ज्ञानेन्द्रियां*

*इन्हीं पांच तत्त्वों से इस शरीर की रचना हुई है।
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इन्हीं पांच तत्त्वों को ग्रहण करने के लिए* *भगवान ने हमें आंख, नाक,कान,जिह्वा और त्वचा—ये पांच ज्ञानेन्द्रियां दे रखी हैं।* *नासिका के द्वारा हम पृथ्वी के गन्धरूपी गुण को, जिह्वा के द्वारा जल के रसरूपी गुण को, कानों के द्वारा आकाश के* *शब्दरूपी गुण को और आंखों के द्वारा अग्नि के रूप गुण अर्थात् सुन्दरता को और त्वचा द्वारा वायु के स्पर्श गुण को ग्रहण करते हैं।*

*माया के द्वारा फेंके गए मायाजाल में मनुष्य बहुत बुरी तरह जकड़ा हुआ है।* *मायापति श्रीकृष्ण की माया से मनुष्य ही नहीं वरन् बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी भ्रमित हो जाते हैं..!!*


सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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