आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे गिरिराज महाराज की परिक्रमा का महत्व इस लेख को पूरा पढऩे के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा चीफ एडीटर एम.बी.न्यूज-24💐💐💐💐

आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे-
💐*गिरिराज परिक्रमा*💐
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सनातन गोस्वामी का नियम था कि वे नित्य प्रतिदिन
गिरि राज गोवर्द्धन महाराज की नित्य परिक्रमा करना. उनके बश की बात नही रही क्योंकि अब उनकी अवस्था 90 वर्ष की हो गयी थी.उनसें नियम पालन करना अव मुश्किल हो गया था. फिर भी वे किसी प्रकार से उसे
निबाहे जा रहे थे. एक बार वे परिक्रमा करते हुए लड़खड़ाकर गिर पड़े. तो अव उन्हें एक गोप-बालक ने पकड़ कर उठाया और कहा-
*”बाबा, तो पै सात कोस की गोवर्द्धन परिक्रमा अब नाँय होय सके. तो अब परिक्रमा को नियम छोड़ दे.”*
बालक के स्पर्श से उनके शरीर मे कम्पन हो आया. उसका मधुर
कण्ठस्वर बहुत देर तक उनके कान मे गूंजता रहा. पर उन्होंने उसकी बात पर ध्यान न दियां अपनी परिक्रमा
जारी रखी. एकबार फिर से वे परिक्रमा मार्ग पर गिर पड़े. दैवयोग से वही बालक फिर सामने आया. और उन्हें फिर से उठाते हुए बोला-
*”बाबा, तू बूढ़ो होय गयौ है. तोऊ माने नाँय परिक्रमा किये बिना. ठाकुर प्रेम ते रीझें, परिश्रम ते नाँय.”*


फिर भी बाबा परिक्रमा करते रहे. पर वे एक संकट
में पड़ गये. बालक की मधुर मूर्ति उनके हृदय में
गड़ कर रह गयी थी. उसकी स्नेहमयी चितवन उनसे
भुलायी नहीं जा रही थी. वे ध्यान में बैठते तो
भी उसी की छबि उनकी आँखों के सामने नाचने लगती थी. खाते-पीते, सोंते-जागते हर समय उसी की याद आती रहती थी. एक दिन जब वे उसकी याद में खोये हुए थे, उनके मन में सहसा एक स्पंदन हुआ, एक नयी स्फूर्ति हुई. वे सोचने लगे-एक साधारण व्रजवासी
बालक से मेरा इतना लगाव! उसमें इतनी शक्ति कि वह


मुझ वयोवृद्ध वैरागी के मन को भी इतना वश में कर लिया कि मैं अपने इष्ट तक का ध्यान न कर सकूँ.नहीं, वह कोई साधारण बालक
नहीं हो सकता, जिसका इतना आकर्षण है. तो
क्या वे मेरे प्रभु मदनगोपाल ही हैं, जो यह
लीला कर रहे हैं?
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एकबार फिर यदि वह बालक मुझे मिल जाय तो मैं सारा रहस्य जाने वगैर उसे
नही छोड़ूँगा । संयोगवश एक दिन परिक्रमा करते समय वह मिल गया. उसने
फिर परिक्रमा का नियम छोड़ देने का वही आग्रह
करना शुरू किया. सनातन गोस्वामी ने उसके चरण
पकड़कर अपना सिर उन पर रख दिया और भाव विभोर हुये भरे स्वर में
कहने लगे-
” हे प्रभु, अब आप हमसे छल न करो. अपने असली स्वरूप में प्रकट होकर बताओ मैं कि अव मे क्या
करूँ. गिरिराज महाराज तो मेरे प्राण हैं. गिरिराज परिक्रमा मेरे प्राणों
की संजीवनी है. शरीर मे
प्राण रहते इसे मे कैसे छोड़ दूं?”
भक्त-वत्सल प्रभु सनातन गोस्वामी
की निष्ठा देखकर प्रसन्न हुए. पर वे परिक्रमा में
उनका कष्ट देखकर वे दु:खी हुए बिना भी नहीं रह सकते थे. उन्हें अपने प्रिय भक्त का कष्ट दूर करना था, उसके स्वयं के नियम की
रक्षा भी करनी थी
और इसका उपाय करने में देर भी क्या
करनी थी? सनातन
गोस्वामी ने जैसे ही
अपनी बात कह चरणों से सिर उठाकर
उनकी ओर देखा उत्तर के लिए, उस बालक
की जगह स्वयं साक्षात मदनगोपाल खड़े थे. वे अपना दाहिना
चरण एक गिरिराज शिला पर रखे थे. उनके मुखारविन्द पर मधुर झलक थी
, नेत्रों में करुणा झलक
रही थीं वे कह रहे थे-
“सनातन, तुम्हारा कष्ट मुझसे नहीं देखा जाता.
तुम गिरिराज परिक्रमा का अपना नियम नहीं छोड़ना
चाहते तो इस गिरिराज शिला की ही परिक्रमा कर लिया करो. इस पर मेरा चरण-चिन्ह अंकित है. अव आपके द्वारा इसकी परिक्रमा करने से तुम्हारी गिरिराज परिक्रमा पूरी हो जाया
करेगी.”
इतना कह मदनगोपाल अन्तर्धान हो गये. सनातन
गोस्वामी मदनगोपाल-चरणान्कित उस शिला को
भक्तिपूर्वक सिर पर रखकर अपनी कुटिया में ले गये.
उसका अभिषेक किया और नित्य उसकी परिक्रमा
करने लगे. *आज भी मदन गोपाल के चरणचिन्हयुक्त वह शिला वृन्दावन में श्रीराधादामोदर के मन्दिर में विद्यमान हैं,*
*ऐसी मान्यता है कि राधा दामोदर मंदिर की चार परिक्रमा लगाने पर गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा का फल मिल जाता है.आज भी कार्तिक सेवा में श्रद्धालु बड़े भाव से मंदिर की परिक्रमा करते है।💐*प्रेम से बोँलिये गिरिराज महाराज की जय💐
💐जय श्रीकृष्ण💐
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