*आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे एक सुन्दर सा लेख-मे बहरा नहीं हूँ*
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” श्रुति बेटी…मैं टहलने जा रहा हूँ…कुछ चाहिये तो नहीं….।” नवीन बाबू ने अपनी बहू से पूछा तो श्रुति किचन से बाहर आई और एक पर्ची के साथ थैला थमाती हुई बोली,” भारत स्वीट्स ‘ से जलेबियाँ भी लेते आइयेगा…आपके पोते को… ”
” बहुत पसंद है..जानता हूँ..लेता आऊँगा।” कहते हुए नवीन बाबू मुस्कुराए और बाहर निकल गये।
सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त होकर नवीन बाबू पत्नी संग खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहें थें।बेटी सुरभि अपने ससुराल में खुश थी और बेटा सुशांत अपने परिवार के साथ दिल्ली में सेटेल था।जी करता तो पति-पत्नी बच्चों से मिल आते थें।छह माह पहले पत्नी का देहांत हो गया..तब वे बहुत अकेले हो गये..अस्वस्थ भी रहने लगे तो सुशांत ने उन्हें अपने पास बुला लिया।कुछ ही दिनों में उन्होंने खुद को शहरी वातावरण के अनुकूल ढ़ाल लिया।प्रतिदिन सुबह के काम से निवृत्त होकर सैर करने निकल जाते..लौटते हुए सब्ज़ी-भाजी और घर की आवश्यक वस्तुएँ भी साथ ले आते।पोते अंश के साथ खेलने और उसे कहानियाँ सुनाने में उनके दिन मज़े में कट रहें थें।कभी-कभी पत्नी की तस्वीर से बातें करते हुए कहते,” कुछ दिन रुक जाती तो तुम भी ये सुख भी भोग लेती..।”
श्रुति की माँ एक रिश्तेदार की शादी अटेंड करने दिल्ली आईं थीं तो बेटी के पास भी चलीं आईं।समधी जी से हाल-समाचार पूछकर वो दोपहर में बेटी के साथ बातें करने लगीं।
” ये तेरा ससुर तो बड़ा फिट है…कब तक टिकेगा यहाँ..।” श्रुति की माँ ने धीरे-से पूछा।
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” बस.. कुछ महीनों की बात है माँ…।अंश की आदत उन्हें पड़ जाएगी तो फिर कभी वापस जाएँगें नहीं।गाँव वाला घर बेचकर पैसे मिलते ही उन्हें किसी आश्रम-वाश्रम में भेज देंगे..।”
” ज़रा धीरे बोल बेटी…दीवारों के कान होते हैं..।”
” होते होंगे माँ…मेरा तो काम समझो हो ही गया।” श्रुति पूरे विश्वास के साथ बोली।
अगली सुबह नवीन बाबू ‘ श्रुति बेटी ‘ कहकर नहीं पुकारे तो श्रुति ने इधर-उधर देखा…उनके कमरे में गई..बिस्तर साफ़-सुथरा देखकर उसे कुछ शक हुआ।ससुर को फ़ोन करने के लिये उसने मोबाइल उठाया तो उनके नंबर से आया मैसेज़ देखकर वह पढ़ने लगी, ” श्रुति बेटी…मैं जा रहा हूँ।तुम लोग मुझे प्रिय हो लेकिन अपना सम्मान तथा पत्नी का निवास अति प्रिय है।मैं रिटायर हुआ हूँ लेकिन बहरा नहीं हूँ।मेरी मृत्यु का समाचार तुमलोगों को मिल जायेगा… याद रखना कि इस घर पर सुरभि का भी उतना ही हक है जितना कि सुशांत का।और हाँ…जब तुम्हारी बहू आये तो उसे अवश्य कहना कि धीरे बोले क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं।- नवी…।” वह चकित थी।
” क्या हुआ..तेरा चेहरा सफेद क्यों पड़ गया..?” माँ ने पूछा तो श्रुति बोली,” कुछ नहीं माँ….।” कहकर वह सोचने लगी कि ससुर के अचानक चले जाने का सुशांत को क्या कारण बताएगी और अंश के सामने क्या बहाने बनाएगी…।
*।।जय जय श्री राम।।*
*।।हर हर महादेव।।*