आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे मानव शरीर का महत्व इस लेख को पूरा पढने केलिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24💐💐💐💐

*मानव देह का महत्व :-
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* संसार का प्रत्येक जीव कर्मशील दिखाई देता है | पशु – पक्षी , कीट- पतंग सभी तो कर्म करते हैं |

यहाँ तक कि स्वर्ग के देवता भी कर्म करते हैं | किंतु इनमें से किसी का भी कर्म स्वतंत्र नहीं है | या यूँ कह लीजिए की उनका कर्म परतंत्र है |
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वो पुरुषार्थ द्वारा ऐसा कर्म नही कर सकते , जिससे वे अपने अनंत जन्मों के संचित कर्म को भस्म कर दें और भविष्य के अनंत काल को बना लें |
चूँकि यह कमाई नाम की चीज़ , पुरुषार्थ नाम का तत्व उनके साथ नहीं रह सकता , इसलिए ये सब भोग योनि के अंतर्गत आते हैं |

आइए , अब हम मानव योनि पर विचार करें | मानव योनि ही एक ऐसी योनि है , जिसमें आकर हम वास्तव में कर्म कर सकते है |
मानव देह बड़ा कमाल का है | एकमात्र मानव देहधारी जीव ही यह शक्ति रखता है कि वह जिस जीव से चाहे अपने अनुरुप कर्म करवा ले , उनको गुलाम बना ले | उनके द्वारा अपनी सेवा ले |

पशु-पक्षी , कीट-पतंग , अथवा देवता सभी आनंद चाहते हैं , लेकिन चौरासी लाख योनियों मे यह शक्ति सिर्फ मानव को ही प्राप्त है कि वह अपने सुख के लिए अन्य चेतन जीवों को गुलाम बना ले , अपना दास बना ले | इन चेतन जीवों के नीचे आते हैं स्थावर , चर , अचर |
अब बृक्ष को ही लीजिए, इनको भोग्य बनाते हैं ये चेतन जीव ! गाय-भैंस को हमने देखा है घास चरते या पेंड़ के पत्तों को खाते हुए |
इधर मानव ने इन चेतन एवं स्थावर दोनों को ही अपना भोग्य बनाया है |

इस प्रकार जड़-चेतन दोनों को मनुष्य ने दास बनाया है | अब आप सोच रहे होंगें कि देवता तो मनुष्य के दास नही हैं ! हाँ , देवता भी मनुष्य के दास बनते हैं | आप सिद्धि कर लें , तो देवता भी आपकी गुलामी करेंगें | आपने इतिहास – पुराण में पढ़ा होगा कि अनेकानेक लोगों ने देवताओं की सिद्धि की थी | रावणादिकों के यहाँ यमराज आदि देवतागण नौकर – चाकर थे |
यह सब सुनकर आप विस्मित हो रहे होंगें , किंतु विस्मय की कोई बात नहीं है क्योंकि इस मानव योनि का ऐसा कमाल ही है कि स्वयं भगवान इसके दास बन जाते हैं , फिर इन देवताओं की क्या गिनती !

अहं भक्तपराधीनो ह्मस्वतन्त्र इव द्विज |

भगवान कहते हैं – मैं तो परतंत्र हूँ , भक्तो का दास हूँ | भक्तों ने मेरा ह्रदय खा लिया है | मुझको क्रीतदास बना लिया है , खरीदा हुआ गुलाम बना लिया है |

हाँ यह बात अलग है कि यह कमाल तभी हो सकता है , जब हमारा पुरुषार्थ पूर्ण शरणागति का हो | हमारी शरणगति , हमारे प्रेम से बँधकर ऐसे सर्वतंत्र स्वतंत्र परात्पर सर्वशक्तिमान भगवान परतंत्र बन जाते हैं |सिर्फ परतंत्र ही नहीं नित्य परतंत्र बन जाते है |
अब तो भक्त ही ईश्वर से कहता है
आपके मस्तिष्क में यह बात अवश्य आ रही होगी कि हमें तो यह सौभाग्य प्राप्त नही हुआ |
अब यह भी कोई बात है ! बिना उधम के भला कुछ प्राप्त होता है !! बिना प्रयास के कभी किसी को कुछ मिला है ? जब आपने भगवत्प्राप्ति के लिए उधम ही नही किया है , तो आपकी बात कैसे बन सकती है ?
यह तो आपकी कमी है | अगर कोई कमर कस ले कि हम भगवत्प्राप्ति करके रहेंगें तो उसे भला उसे कौन रोक सकता है | भगवान तो भुजाएँ पसारे सदा ही तैयार है हमें अपनाने को | वो तो तैयार वैठे है अपने भक्तों के प्रेमाधीन हो जाने को , उनके हाथ बिक जाने को , उनकी दासता करने को | कर्म करने में स्वतंत्र मानव को कर्म करने की यह स्वतंत्रता उसे विशेषाधिकार के रुप में प्राप्त हुई है |

प्रति वर्ष इस समय अधिकांश लोग आने वाले साल के लिए संकल्प करते हैं ।

चौरासी लाख योनियों में मानव देह सबसे दुर्लभ है। वह हमें हो गया है । हम तो और भी अधिक भाग्यशाली हैं क्योंकि हमें स्वयं रसिक शिरोमणि हमारे गुरु के रूप में मिले हैं।
भले ही आपको अभी इसका एहसास न हो, लेकिन सच तो यह है कि हमारा दो तिहाई लक्ष्य इन दोनों अतिदुर्लभ चीज़ों से स्वत: प्राप्त हो चुका है। अब एक तिहाई ही बचा है – दिव्यानंद प्राप्त करने के लिए हमें बस अपनी ओर से थोड़ा और प्रयास करने की आवश्यकता है।

1) प्रतिदिन साधना करें – दिन भर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए अपने पूरे दिन का समय निर्धारित करके तीन हिस्से में बांट लें 8 काम परिवार काम 8 घंटे आराम,8 घंटे प्रभु की साधना के लिए

2) अपने खाली समय का सदुपयोग करें – जब भी समय मिले, हरि गुरु का प्रेमपूर्ण स्मरण करें।
इसी में आपका कल्याण है और इसी से आप अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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