. .*आये दिन सत्संग*
. .*की क्या जरुरत है ?*
*****************************
*एक बार एक युवक गुरूजी के पास आया और कहने लगा,गुरु महाराज! मैंने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है। मैं विवेकशील हूँ और अपना अच्छा-बुरा भली-भाँति समझता हूँ, किन्तु फिर भी मेरे माता पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं। जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेक युक्त हूँ, तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरुरत है? गुरु जी ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई और पास ही जमीन पर खड़े एक खूंटे पर मार दी।* युवक अनमने भाव से चला गया अगले दिन वह फिर गुरु जी के पास आया और बोला, मैंने कल आपसे एक प्रश्न पुछा था, किन्तु अपने उत्तर नहीं दिया।
क्या आज आप उत्तर देगें?
गुरू जी ने पुनः खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किन्तु बोले कुछ नहीं। युवक ने सोचा संत पुरुष हैं, शायद आज भी मौन है वह तीसरे दिन फिर आया और अपना प्रश्न दोहराया। गुरू जी ने फिर से खूंटे पर हथौड़ी चलाई।
अब युवक परेशान होकर बोला, आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? मैं तीन दिन से आप से प्रश्न पुछा रहा हूं।
तब गुरू जी ने कहा, ‘मैं तो तुम्हें रोज जवाब दे रहा हूं।
मैं इस खूंटे पर रोज हथौड़ी मार कर जमीन में इसकी पकड़ मजबुत कर रहा हूं। यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोड़ी हलचल होने से यह निकल जायेगा।
यही काम सत्संग हमारे लिए करता है। क्योंकि सत्संग हमारे मन रूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहे। युवक को गुरु जी ने सही दिशा का बोध करा दिया। *सत्संग हर रोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर, “असत्” को मिटाता है, इसलिए सत्संग* हमारी जीवन चर्या के लिए *अनिवार्य* होना चाहिए..
*गुरुवर के चरणों में*
*कोटि-कोटि प्रणाम*
🙏 🙏 🙏