* माता का दूसरा दिन- देवी ब्रह्मचारिणी*
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*नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। इस बार चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन बुधवार को पड़ रहा है। ऐसे में देवी की कृपा प्राप्ति हेतु जातक इस दिन ‘गहरे नीले रंग के वस्त्र’ पहनें।*
*• लाभ – बुधवार को नवरात्रि उत्सव में ‘गहरे नीले रंग के वस्त्र’ धारण करें। ये रंग आपको असीम आनन्द प्रदान करने वाला माना जाता है। यह रँग जीवन में सरलता व शान्ति लाता है।*
*देवी के दिव्यास्त्र*
*नव दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, देवी के अलग-अलग स्वरुपों में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र हैं परंतु ये सब मां आदि शक्ति के ही विभिन्न रूप हैं।*
*दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि देवी को देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र व हथियार सौपें थे ताकि असुरों के साथ होने वाले संग्रामों में विजय प्राप्त हो व धर्म सदैव स्थापित रहे, अधर्म का नाश हो व सद्मार्ग की गति बनी रहे। देवी के सर्वाधिक अर्थात् अट्ठारह हाथ उनके महा लक्ष्मी स्वरुप में दिखाई देते हैं। इस स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है कि-*
*ॐ अक्षस्त्रक्परशुं गदेशुकुलिशं पद्म धनुषकुण्डिकां दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।*
*शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थितां ।।*
इसका अर्थ है कि- “मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महा लक्ष्मी का भजन करता हूं, जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक् धारण करती है।”
इनमें से कई प्रमुख दिव्यास्त्र विभिन्न देवताओं द्वारा देवी को अर्पण किए गए हैं।
देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है। कहा गया है ये त्रिशूल भोलेनाथ ने अपने शूल में से निकाल कर मां को सौंपा था।
शक्ति दिव्यास्त्र अग्निदेव ने मां को प्रदान किया था, महिषासुर सहित अनेक दैत्य रथ, हाथी, घोड़ों की सेना के साथ चतुरंगिणी सेना ले कर युद्ध के लिए आए, तब तब देवी मां अपनी इसी शक्ति से उन्हें खदेड़ डालतीं थी। इन सभी का मां ने इसी शक्तिबल से वध किया था।
रक्त बीज व अन्य दैत्यों को मारने के लिए मां ने चक्र का उपयोग किया। अपने भक्तों की रक्षा के लिए मां को यह चक्र लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उत्पन्न कर के दिया था।
धरती, आकाश व पाताल, तीनों लोकों को अपनी ध्वनि से कम्पायमान कर देने वाला शंख, जब ऊंचे स्वर में युद्ध भूमि में गुंजायमान होता, तब दैत्य, असुर, राक्षसों की सेना भाग खड़ी होती थी। वे डर से कांपने लगते थे। वरुणदेव ने देवी को यह शंख भेंट किया था।
तीनों लोकों के क्षोभग्रस्त हो जाने पर जब दैत्य गण देवी की ओर हथियार ले कर दौड़े तब देवी ने धनुष बाणों के प्रहार से समस्त सेना का नाश किया था. यह धनुष व बाणों के भरे हुए दो तरकश पवन देव ने अर्पित किए थे।
अनेक असुरों व दैत्यों को घंटे के नाद से मूर्छित कर के उनका विनाश करने वाली मां को ऐरावत हाथी के गले से उतर कर एक घंटा भगवान इंद्र ने दिया। साथ ही अपने वज्र से एक और वज्र उत्पन्न किया। वज्र व घंटा देवराज इंद्र ने मां को दिए थे।
चंड-मुंड का नाश करने के लिए मां ने काली का विकराल रुप धारण किया, नरमुंडों की माला, क्रोध से सम्पूर्ण मुख का रंग काला, जीभ बाहर की ओर लटक आई, यह स्वरूप विचित्र खद्वांग धारण किये हुए है। यह युद्ध तलवार व फरसे से लड़ा गया। दैत्यों का संहार हुआ। यह फरसा विश्वकर्मा ने उन्हें भेंट किया था।