आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप पढेंगे-
*”आत्मा, शरीर और पारिवारिक*
*संबंध* के बारे मे आवश्यक जानकारी-
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आप मान लीजिए कि आप एक ट्रेन में सफर कर रहे हैं, आपका सफर थोड़ा लम्बा है और आपके साथ, आपके ही डब्बे में कुछ अन्य यात्री भी सफर कर रहे हैं। चूंकि सफर लम्बा है तो पास बैठे यात्रियों से हमारी बातचीत शुरू हो जाती है, जान पहचान हो जाती है,
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आप आपस मे काफी घुल मिल जाते हैं।
परन्तु जैसे ही किसी यात्री का स्टेशन आता है वह यात्री उस ट्रैन के डिब्बे से उतर कर चला जाता है। कोई पहले उतर कर चला जाता है तो कोई बाद में।
ठीक इसी प्रकार आत्मा अलग अलग शरीरों में लगातार सफर कर रही है, यहाँ ट्रेन का वो डब्बा आपका शरीर है और आप के साथ वाले यात्री आपके परिवार के सदस्य हैं, जिनसे आपको उस लम्बे सफर के दौरान लगाव हो जाता है।
भगवान श्री कृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं.. ज्ञानी मनुष्य वही है जो ना तो जीवित व्यक्ति का शोक करता है और ना ही मृत व्यक्ति का। शायद कुछ लोगो को यह बात बुरी लगती है परन्तु सत्य यही है। आप लोग चाहे माने या ना माने। इसीलिए शास्त्रो में कहा गया है ‘मोह’ बंधन का कारण है।
चूंकि हम सभी शरीर को ही वास्तविक मानते हैं, इसीलिए इस शरीर से जुड़े हुए लोगों, रिश्तों, संबंधों इत्यादि को भी वास्तविक मानते हैं परन्तु यह सत्य नही हैं। हम सभी खुद को शरीर मानकर भ्रम में जी रहे है।
सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे