आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे क्योंकि हमारा घर एक है-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24
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आज के समय मे कहा जाता है कि भाई का होना सच में भाग्य की बात होती है और भाई एक आजीवन साथी और सच्चे दोस्त की तरह होता है।
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भाई का साथ मिलता है तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है।
*”हमारा घर एक है”*
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राम और श्याम दो भाई एक ही मकान में रहते थे—राम नीचे, श्याम ऊपर।
पता नही दोनों भाई कब एक दूसरे से दूर होते गए, एक ही मकान में रहकर भी ज्यादा बातें न करना, विवाद वाली बातों को तूल देना, यही सब चलता था। राम ऑफिस के लिए जल्दी निकलते और घर भी जल्दी आते थे, जबकि श्याम देर से निकलता और देर से लौटता था, इसलिए श्याम की गाड़ी हमेशा उनकी गाड़ी के पीछे खड़ी होती थी। हर रोज सुबह गाड़ी हटाने के लिए उनका आवाज देना श्याम को हमेशा अखरता, उसे लगता कि मेरी नींद खराब हो रही है। कभी रात के वक्त उनका ये बोलना नागवार गुजरता कि बच्चों को फर्श पर कूदने से मना करो, नींद में खलल पड़ता है।
ऐसे ही गुजरते दिनों के बीच एक बार श्याम बालकनी में बैठा था, कि उसे नीचे से मकान का गेट खुलने की आवाज सुनाई दी, झांककर देखा, तो पाया कि नीचे कॉलोनी के युवाओं की टोली थी जो किसी त्यौहार का चंदा मांगने आई थी। नीचे राम से चंदा लेकर वो लोग पहली मंजिल पर आने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने लगे, तो वह बोले,” अरे ऊपर मत जाओ, ऊपर नीचे एक ही घर है”। युवाओं की टोली तो चली गई पर श्याम के दिमाग में राम कि बात गूँजने लगी, “ऊपर नीचे एक ही घर है”।
उन युवाओं के लिए यह एक साधारण वाक्य था, मगर श्याम लिए यह आत्मचिंतन का क्षण था।
भैया सच ही तो कह रहे थे—हमारा घर एक था, फिर भी मैं उसे अलग मानने की भूल कर रहा था। छोटी-छोटी बातें मुझे उनसे दूर कर रही थीं, जबकि भैया के दिल में यह दीवारें कभी बनी ही नहीं थीं।
श्याम शर्मिंदगी महसूस करने लगा कि भैया में इतना बड़प्पन हैं, और मैं उनसे बैर रखता हूँ?
बात सौ दो सौ रूपयों के चंदे की नहीं बल्कि सोच की थी, और भैया अच्छी सोच में मुझसे कहीं आगे थे।
उस रात श्याम ने ठान लिया कि अब यह दूरी खत्म करनी है। अगले दिन से मैंने खुद सुबह जल्दी उठकर गाड़ी हटा दी, ताकि भैया को आवाज न लगानी पड़े। बच्चों को समझाया कि वे रात को धीरे चलें, ताकि नीचे कोई परेशान न हो।
धीरे-धीरे हमारे रिश्ते में गर्माहट लौटने लगी। पहले जहाँ बस ज़रूरत भर की बातें होती थीं, अब हंसी-मजाक भी होने लगा।
श्याम को एहसास हो गया कि घर सिर्फ ईंट-पत्थर की दीवारों से नहीं बनता, बल्कि उसे जोड़ने वाली भावनाओं से बनता है।