आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आपदेखे एक बहुत ही सुन्दर रामायण प्रसँग इसे पूरा देखने के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24💐💐💐💐💐

📢🌺🌞श्री रामचरितमानस चोपाइ नित्य पाठ 📢🌺🌞डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24

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🙏🕖 कृपया रामायण को समय निकाल कर अवश्य पढ़े🙏
⭐सियावर राम जय जय राम ⭐
🕉️मेरे प्रभु राम जय जय राम 🕉️
🙏करो कल्याण जय जय राम 🙏
🌞मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी 🌞
🌹रघुनंदन राघव राम हरे सियाराम हरे सियाराम हरे।🌹
🕉️कवन सो काज कठिन जग माही जो नहीं होई तात तुम पाही।🕉️
🌹श्री राम जय राम जय जय राम।🌹
🕉️श्री राम जय राम जय जय राम 🕉️
🌞राधावर श्री कृष्ण भगवान की जय 🌞
🌷गोंरावर भोलेनाथ की जय 🌷
🌹पवनसुत हनुमान की जय 🌹

🧡🧡 दो०- समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ । जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिरु नाइ ॥ ५७ ॥

🕉️🕉️ उसी समय यह समाचार सुनकर सीताजी अकुला उठीं और सासके पास जाकर उनके दोनों चरणकमलोंकी वन्दना कर सिर नीचा करके बैठ गयीं ॥ ५७ ॥३७६

• रामचरितमानस *

🌞🌞 दीन्हि असीस सासु मृदु बानी। अति सुकुमारि देखि अकुलानी।। बैठि नमितमुख सोचति सीता। रूप रासि पति प्रेम पुनीता ।।

🌷🌷 सासने कोमल वाणीसे आशीर्वाद दिया। वे सीताजीको अत्यन्त सुकुमारी देखकर व्याकुल हो उठीं। रूपकी राशि और पतिके साथ पवित्र प्रेम करनेवाली सीताजी नीचा मुख किये बैठी सोच रही हैं॥ १ ॥

🌹🌹 चलन चहत बन जीवन नाथू । केहि सुकृती सन होइहि साथू।। की तनु प्रान कि केवल प्राना। बिधि करतबु कछु जाइ न जाना।।

🌷🌷 जीवननाथ (प्राणनाथ) वनको चलना चाहते हैं। देखें किस पुण्यवान्से उनका साथ होगा- शरीर और प्राण दोनों साथ जायेंगे या केवल प्राणहीसे इनका साथ होगा ? विधाताकी करनी कुछ जानी नहीं जाती ॥ २ ॥

🌞🌞 चारु चरन नख लेखति धरनी । नूपुर मुखर मधुर कबि बरनी।। मनहुँ प्रेम बस बिनती करहीं। हमहि सीय पद जनि परिहरहीं।

🌹🌹 सीताजी अपने सुन्दर चरणोंके नखोंसे धरती कुरेद रही हैं। ऐसा करते समय नूपुरोंका जो मधुर शब्द हो रहा है, कवि उसका इस प्रकार वर्णन करते हैं कि मानो प्रेमके वश होकर नूपुर यह विनती कर रहे हैं कि सीताजीके चरण कभी हमारा त्याग न करें ॥ ३ ॥

🕉️🕉️ मंजु बिलोचन मोचति बारी। बोली देखि राम महतारी।। तात सुनहु सिय अति सुकुमारी । सास ससुर परिजनहि पिआरी ॥

🌞🌞 सीताजी सुन्दर नेत्रोंसे जल बहा रही हैं। उनकी यह दशा देखकर श्रीरामजीकी माता कौसल्याजी बोलीं- हे तात ! सुनो, सीता अत्यन्त ही सुकुमारी हैं तथा सास, ससुर और कुटुम्बी सभीको प्यारी है॥४॥

🌹🌹 दो० – पिता जनक भूपाल मनि ससुर भानुकुल भानु । पति रबिकुल कैरव बिपिन बिधु गुन रूप निधानु ॥ ५८ ॥

🌷🌷 इनके पिता जनकजी राजाओंके शिरोमणि हैं; ससुर सूर्यकुलके सूर्य हैं और पति सूर्यकुलरूपी कुमुदवनको खिलानेवाले चन्द्रमा तथा गुण और रूपके भण्डार हैं ॥ ५८ ॥

🕉️🕉️ मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई। रूप रासि गुन सील सुहाई॥ नयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई। राखेउँ प्रान जानकिहिं लाई॥

🌞🌞 फिर मैंने रूपकी राशि, सुन्दर गुण और शीलवाली प्यारी पुत्रवधू पायी है। मैंने इन (जानकी) को आँखोंकी पुतली बनाकर इनसे प्रेम बढ़ाया है और अपने प्राण इनमें लगा रक्खे हैं॥ १॥* अयोध्याकाण्ड

३७७

🕉️🕉️ कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली । सींचि सनेह सलिल प्रतिपाली।। फूलत फलत भयउ बिधि बामा । जानि न जाइ काह परिनामा।।

🌷🌷 इन्हें कल्पलताके समान मैंने बहुत तरहसे बड़े लाड़-चावके साथ स्नेहरूपी जलसे सींचकर पाला है। अब इस लताके फूलने-फलनेके समय विधाता वाम हो गये। कुछ जाना नहीं जाता कि इसका क्या परिणाम होगा ॥ २ ॥

🕉️🕉️ पलँग पीठ तजि गोद हिंडोरा। सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा ।। जिअनमूरि जिमि जोगवत रहऊँ। दीप बाति नहिं टारन कहऊँ ।।

🌞🌞 सीताने पर्यङ्कपृष्ठ (पलंगके ऊपर), गोद और हिंडोलेको छोड़कर कठोर पृथ्वीपर कभी पैर नहीं रक्खा। मैं सदा सञ्जीवनी जड़ीके समान [ सावधानीसे इनकी रखवाली करती रही हूँ ! कभी दीपककी बत्ती हटानेको भी नहीं कहती ॥ ३ ॥

🌷🌷 सोइ सिय चलन चहति बन साथा । आयसु काह होइ रघुनाथा ।। चंद किरन रस रसिक चकोरी। रबि रुख नयन सकइ किमि जोरी।।

🕉️🕉️ वही सीता अब तुम्हारे साथ वन चलना चाहती है। हे रघुनाथ! उसे क्या आज्ञा होती है ? चन्द्रमा-की किरणोंका रस (अमृत) चाहनेवाली चकोरी सूर्यकी ओर आँख किस तरह मिला सकती है ॥ ४ ॥

🌞🌞 दो०- करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जंतु बन भूरि । बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि ॥ ५९ ॥

🌹🌹 हाथी, सिंह, राक्षस आदि अनेक दुष्ट जीव-जन्तु वनमें विचरते रहते हैं। हे पुत्र ! क्या विषकी वाटिकामें सुन्दर संजीवनी बूटी शोभा पा सकती है ? ॥ ५९ ॥

🌷🌷 बन हित कोल किरात किसोरी। रचीं बिरंचि बिषय सुख भोरी।। पाहन कृमि जिमि कठिन सुभाऊ । तिन्हहि कलेसु न कानन काऊ ।।

🕉️🕉️ वनके लिये तो ब्रह्माजीने विषयसुखको न जाननेवाली कोल और भीलोंकी लड़कियोंको रचा है, जिनका पत्थरके कीड़े-जैसा कठोर स्वभाव है। उन्हें वनमें कभी क्लेश नहीं होता ॥ १ ॥

🌞🌞 कै तापस तिय कानन जोगू। जिन्ह तप हेतु तजा सब भोगू॥ सिय बन बसिहि तात केहि भाँती । चित्रलिखित कपि देखि डेराती ।।

🌞🌞 अथवा तपस्वियोंकी स्त्रियाँ वनमें रहने योग्य हैं, जिन्होंने तपस्याके लिये सब भोग तज दिये हैं। हे पुत्र ! जो तसवीरके बंदरको देखकर डर जाती हैं वे सीता वनमें किस तरह रह सकेंगी ? ॥ २ ॥

🕉️🕉️ सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु कि हंसकुमारी।। अस बिचारि जस आयसु होई। मैं सिख देउँ जानकिहि सोई।३७८

* रामचरितमानस *

🌞🌞 देवसरोवरके कमलवनमें विचरण करनेवाली हंसिनी क्या गड़यों (तलैयों) में रहनेके योग्य है ? ऐसा विचारकर जैसी तुम्हारी आज्ञा हो, मैं जानकीको वैसी ही शिक्षा दूँ ॥ ३॥

🌷🌷 जौं सिय भवन रहै कह अंबा । मोहि कहँ होइ बहुत अवलंबा ।। सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी।।

🕉️🕉️ माता कहती हैं- यदि सीता घरमें रहें तो मुझको बहुत सहारा हो जाय। श्रीरामचन्द्रजीने माताकी प्रिय वाणी सुनकर, जो मानो शील और स्नेहरूपी अमृतसे सनी हुई थी, ॥ ४ ॥

🌞🌞 दो० – कहि प्रिय बचन बिबेकमय कीन्हि मातु परितोष । लगे प्रबोधन जानकिहि प्रगटि बिपिन गुन दोष ।॥ ६० ॥

🕉️🕉️ विवेकमय प्रिय वचन कहकर माताको सन्तुष्ट किया। फिर बनके गुण-दोष प्रकट करके वे जानकीजीको समझाने लगे ॥ ६० ॥

मासपारायण, चौदहवाँ विश्राम

🌞🌞 मातु समीप कहत सकुचाहीं । बोले समउ समुझि मन माहीं॥ राजकुमारि सिखावनु सुनहू । आन भाँति जियँ जनि कछु गुनहू।।

🌷🌷 माताके सामने सीताजीसे कुछ कहनेमें सकुचाते हैं। पर मनमें यह समझकर कि यह समय ऐसा ही है, वे बोले- हे राजकुमारी ! मेरी सिखावन सुनो। मनमें कुछ दूसरी तरह न समझ लेना ॥ १ ॥

🌹🌹 आपन मोर नीक जौं चहहू। बचनु हमार मानि गृह रहहू। आयसु मोर सासु सेवकाई । सब बिधि भामिनि भवन भलाई।।

🌞🌞 जो अपना और मेरा भला चाहती हो, तो मेरा वचन मानकर घर रहो। हे भामिनी ! मेरी आज्ञाका पालन होगा, सासकी सेवा बन पड़ेगी। घर रहनेमें सभी प्रकारसे भलाई है ॥ २ ॥

🕉️🕉️ एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा ॥ जब जब मातु करिहि सुधि मोरी। होइहि प्रेम बिकल मति भोरी॥

🌷🌷 आदरपूर्वक सास-ससुरके चरणोंकी पूजा (सेवा) करनेसे बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है। जब-जब माता मुझे याद करेंगी और प्रेमसे व्याकुल होनेके कारण उनकी बुद्धि भोली हो जायगी (वे अपने-आपको भूल जायँगी), ॥ ३ ॥

🌞🌞 तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी । सुंदरि समुझाएहु मृदु बानी। कहउँ सुभायँ सपथ सत मोही। सुमुखि मातु हित राखउँ तोही॥

🌹🌹 हे सुन्दरी! तब-तब तुम कोमल वाणीसे पुरानी कथाएँ कह-कहकर इन्हें समझाना। हे सुमुखि ! मुझे सैकड़ों सौगन्ध हैं, मैं यह स्वभावसे ही कहता हूँ कि मैं तुम्हें केवल माताके लिये ही घरपर रखता हूँ ॥ ४ ॥३७८

* रामचरितमानस

🌞🌞 देवसरोवरके कमलवनमें विचरण करनेवाली हंसिनी क्या गडैयों (तलैयों) में रहनेके योग्य है? ऐसा विचारकर जैसी तुम्हारी आज्ञा हो, मैं जानकीको वैसी ही शिक्षा दूँ ॥ ३ ॥

🌷🌷 जौं सिय भवन रहै कह अंबा । मोहि कहँ होइ बहुत अवलंबा।। सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी।।

🕉️🕉️ माता कहती है- यदि सीता घरमें रहें तो मुझको बहुत सहारा हो जाय। श्रीरामचन्द्रजीने माताकी प्रिय वाणी सुनकर, जो मानो शील और स्नेहरूपी अमृतसे सनी हुई थी, ॥४॥

🌷🌷 दो०- कहि प्रिय बचन बिबेकमय कीन्हि मातु परितोष । लगे प्रबोधन जानकिहि प्रगटि बिपिन गुन दोष ।॥ ६० ॥

🌞🌞 विवेकमय प्रिय वचन कहकर माताको सन्तुष्ट किया। फिर वनके गुण-दोष प्रकट करके वे जानकीजीको समझाने लगे ॥ ६० ॥

🕉️🕉️ मासपारायण, चौदहवाँ विश्राम मातु समीप कहत सकुचाहीं । बोले समउ समुझि मन माहीं।। राजकुमारि सिखावनु सुनहू। आन भाँति जियँ जनि कछु गुनहू।।

⭐⭐ माताके सामने सीताजीसे कुछ कहनेमें सकुचाते हैं। पर मनमें यह समझकर कि यह समय ऐसा ही है, वे बोले- हे राजकुमारी ! मेरी सिखावन सुनो। मनमें कुछ दूसरी तरह न समझ लेना ॥ १॥

🌷🌷 आपन मोर नीक जौं चहहू। बचनु हमार मानि गृह रहहू।। आयसु मोर सासु सेवकाई । सब बिधि भामिनि भवन भलाई।।

🕉️🕉️ जो अपना और मेरा भला चाहती हो, तो मेरा वचन मानकर घर रहो। हे भामिनी ! मेरी आज्ञाका पालन होगा, सासकी सेवा बन पड़ेगी। घर रहनेमें सभी प्रकारसे भलाई है ॥ २ ॥

🌞🌞एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा। सादर सासु ससुर पद पूजा।। जब जब मातु करिहि सुधि मोरी । होइहि प्रेम बिकल मति भोरी॥

🌞🌞 आदरपूर्वक सास-ससुरके चरणोंकी पूजा (सेवा) करनेसे बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है। जब-जब माता मुझे याद करेंगी और प्रेमसे व्याकुल होनेके कारण उनकी बुद्धि भोली हो जायगी (वे अपने-आपको भूल जायँगी), ॥ ३ ॥

🌷🌷 तब तब तुम्ह कहि कथा पुरानी । सुंदरि समुझाएहु मृदु बानी।। कहउँ सुभायँ सपथ सत मोही। सुमुखि मातु हित राखउँ तोही।

🕉️🕉️ हे सुन्दरी! तब-तब तुम कोमल वाणीसे प्रानी कथाएँ कह कहकर इन्हें समझाना । हे सुमुखि ! मुझे सैकडों सौगन्ध हैं, मैं यह स्वभावसे ही कहता है कि मैं तुम्हें केवल माताके लिये ही घरपर रखता हूँ ॥ ४ ॥• अयोध्याकाण्ड •

३७९

🌞🌞 छो०- गुर श्रुति संमत धरम फलु पाइअ बिनहिं कलेस । हठ बस सब संकट सहे गालव नहुष नरेस ॥ ६१ ॥

🌷🌷 [ मेरी आज्ञा मानकर घरपर रहनेसे] गुरु और वेदके द्वारा सम्मत धर्म [के आचरण] का फल तुम्हें बिना ही क्लेशके मिल जाता है। किन्तु हठके वश होकर गालव मुनि और राजा नहुष आदि सबने सङ्कट ही सहे ॥ ६१ ॥

🌞🌞 मैं पुनि करि प्रवान पितु बानी। बेगि फिरब सुनु सुमुखि सयानी।। दिवस जात नहिं लागिहि बारा। सुंदरि सिखवनु सुनहु हमारा।।

🕉️🕉️ हे सुमुखि ! हे सयानी ! सुनो, मैं भी पिताके वचनको सत्य करके शीघ्र ही लौटूंगा। दिन जाते देर नहीं लगेगी। हे सुन्दरी ! हमारी यह सीख सुनो ! ॥ १ ॥

🌞🌞 जौं हठ करहु प्रेम बस बामा । तौ तुम्ह दुखु पाउब परिनामा ।। काननु कठिन भयंकरु भारी । घोर घामु हिम बारि बयारी।।

🌹🌹 हे वामा ! यदि प्रेमवश हठ करोगी, तो तुम परिणाममें दुःख पाओगी। वन बड़ा कठिन (क्लेशदायक) और भयानक है। वहाँकी धूप, जाड़ा, वर्षा और हवा सभी बड़े भयानक है ॥ २ ॥

🌷🌷 कुस कंटक मग काँकर नाना। चलब पयादेहिं बिनु पदत्राना।। चरन कमल मृदु मंजु तुम्हारे । मारग अगम भूमिधर भारे।।

🧡🧡 रास्तेमें कुश, काँटे और बहुतसे कंकड़ हैं। उनपर बिना जूतेके पैदल ही चलना होगा। तुम्हारे चरण-कमल कोमल और सुन्दर हैं और रास्तेमें बड़े-बड़े दुर्गम पर्वत हैं॥ ३ ॥

🌞🌞 कंदर खोह नदीं नद नारे । अगम अगाध न जाहिं निहारे।। भालु बाघ बृक केहरि नागा। करहिं नाद सुनि धीरजु भागा।।

🕉️🕉️ पर्वतोंकी गुफाएँ, खोह (दरें), नदियाँ, नद और नाले ऐसे अगम्य और गहरे हैं कि उनकी ओर देखातक नहीं जाता। रीछ, बाघ, भेड़िये, सिंह और हाथी ऐसे [भयानक ] शब्द करते हैं कि उन्हें सुनकर धीरज भाग जाता है॥४॥

🌸🌸 दो० – भूमि सयन बलकल बसन असनु कंद फल मूल । ते कि सदा सब दिन मिलहिं सबुइ समय अनुकूल ॥ ६२ ॥

💖💖 जमीनपर सोना, पेड़ोंकी छालके वस्त्र पहनना और कन्द, मूल, फलका भोजन करना होगा। और वे भी क्या सदा सब दिन मिलेंगे ? सब कुछ अपने-अपने समयके अनुकूल ही मिल सकेगा ॥ ६२ ॥

💙💙 नर अहार रजनीचर चरहीं। कपट बेष बिधि कोटिक करहीं।। लागइ अति पहार कर पानी । बिपिन बिपति नहिं जाइ बखानी।।३८२

• रामचरितमानस

♥️♥️ दो० – खग मृग परिजन नगरु बनु बलकल बिमल दुकूल । नाथ साथ सुरसदन सम परनसाल सुख मूल ॥ ६५ ॥

🌺🌺 हे नाथ! आपके साथ पक्षी और पशु ही मेरे कुटुम्बी होंगे, वन ही नगर और वृक्षोंकी छाल ही निर्मल वस्त्र होंगे और पर्णकुटी (पत्तोंकी बनी झोंपड़ी) ही स्वर्गके समान सुखोंकी मूल होगी ॥ ६५ ॥

🌹🌹 बनदेबीं बनदेव उदारा । करिहहिं सासु ससुर सम सारा ।। कुस किसलय साथरी सुहाई। प्रभु सँग मंजु मनोज तुराई ।।

🌷🌷 उदार हृदयके वनदेवी और वनदेवता ही सास-ससुरके समान मेरी सार-सँभार करेंगे, और कुशा और पत्तोंकी सुन्दर साथरी (बिछौना) ही प्रभुके साथ कामदेवकी मनोहर तोशकके समान होगी ॥ १ ॥

🕉️🕉️ कंद मूल फल अमिअ अहारू । अवध सौध सत सरिस पहारू।। छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकी । रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी।।॥

🌞🌞 कन्द, मूल और फल ही अमृतके समान आहार होंगे और [वनके] पहाड़ ही अयोध्याके सैकड़ों राजमहलोंके समान होंगे। क्षण-क्षणमें प्रभुके चरणकमलोंको देख-देखकर मैं ऐसी आनन्दित रहूँगी जैसी दिनमें चकवी रहती है ॥ २ ॥

🌹🌹 बन दुख नाथ कहे बहुतेरे । भय बिषाद परिताप घनेरे।। प्रभु बियोग लवलेस समाना । सब मिलि होहिं न कृपानिधाना।।

🌷🌷 हे नाथ! आपने वनके बहुत-से दुःख और बहुत-से भय, विषाद और सन्ताप कहे। परन्तु हे कृपानिधान ! वे सब मिलकर भी प्रभु (आप) के वियोग [ से होनेवाले दुःख ] के लवलेशके समान भी नहीं हो सकते ॥ ३ ॥

🌞🌞 अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि । लेइअ संग मोहि छाड़िअ जनि।। बिनती बहुत करौं का स्वामी। करुनामय उर अंतरजामी॥

🌷🌷 ऐसा जीमें जानकर, हे सुजानशिरोमणि! आप मुझे साथ ले लीजिये, यहाँ न छोड़िये। हे स्वामी ! मैं अधिक क्या विनती करूँ ? आप करुणामय हैं और सबके हृदयके अंदरकी जाननेवाले हैं ॥ ४ ॥

🌞🌞 दो० – राखिअ अवध जो अवधि लगि रहत न जनिअहिं प्रान । दीनबंधु सुंदर सुखद सील सनेह निधान ॥ ६६ ॥

🕉️🕉️ हे दीनबन्धु ! हे सुन्दर ! हे सुख देनेवाले ! हे शील और प्रेमके भण्डार ! यदि अवधि (चौदह वर्ष) तक मुझे अयोध्यामें रखते हैं तो जान लीजिये कि मेरे प्राण नहीं रहेंगे ॥ ६६ ॥

🙏🙏 नम्र याचना :-

🌷🌷 मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुवीर । अस विचारि रघुवंश मणि, हरहु विषम भव पीर ।। 1 ।।

🌹🌹 बार बार वर माँगहु – हरिषि देहु श्री रंग । पद सरोज अनपायनी, भक्ति सदा सत्संग ।। 2 ।।

🌷🌷 अर्थ न धर्म, का काम रुचि, गति न चहों निर्वाण । जन्म जन्म रति राम पद, यह वरदान न आन ।। ३।।

🌹🌹 स्वामी मोहि न विसारियो, लाख लोग मिलि जाहि । हम से तुम को बहुत हैं, तुम से हम को नाहि ।। 4 ।।

🌷🌷 नांहि विद्या नंहि वाहुवल, नंहि खर्चन को दाम । मोह से पतित अपंग की, तुम पत राखहु राम ।। 5।।

🌹🌹 श्रवण सुयश सुनि आयह, प्रभु भजन भवपीर । त्राहि त्रहि आरति हरण, शरण सुखद रघुवीर ।। 6 ।।

🌷🌷 कामिहि नारि पियारि जिमि, लोभिहि प्रिय जिमि दाम । तिमिहि रघुनाथा निरन्तर, प्रिय लागहु मोहि राम ।। 7 ।।

🌹🌹 मैं अपराधी जन्म का, नत शिख भरा विकास । तुम दात दुख भंजना, मेरी सुनहु पुकार ।। 8 ।।

🌷🌷 क्या मुख ले विनती करूँ, लाज लगत है मोहि । तुम देखत अबगुन कीए, कैसे भावु तोहि ।।१।।

⭐सियावर राम जय जय राम ⭐
🕉️मेरे प्रभु राम जय जय राम 🕉️
🙏करो कल्याण जय जय राम 🙏
🌞मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी 🌞
🌹रघुनंदन राघव राम हरे सियाराम हरे सियाराम हरे।🌹
🕉️कवन सो काज कठिन जग माही जो नहीं होई तात तुम पाही।🕉️
🙏दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी।🙏
🌹श्री राम जय राम जय जय राम।🌹
🕉️श्री राम जय राम जय जय राम 🕉️
🌹सियावर श्रीरामचन्द्र की जय 🌹
🌞राधावर श्री कृष्ण भगवान की जय 🌞
🌷गोंरावर भोलेनाथ की जय 🌷
🌹पवनसुत हनुमान की जय 🌹
🌷सब भक्तन की जय 🌷
🌞सब सन्तन की जय 🌞
🌹गऊ माता की जय 🌹
🌷गंगा माता की जय 🌷
🌹भारत माता की जय🌹

💐सियाराम चन्द्र कीजय💐💐

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