आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे-
*छोटा बनो हरी को पाओ*
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भगवान श्रीकृष्ण ने, ‘ छोटी उंगली ‘ पर ही, क्यों गोवर्धन पर्वत उठाया..?
जब भगवान श्रीकृष्ण, गोकुलवासियों को इंद्रदेव के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत ‘ उठाने वाले थे। तो उन्होंने अपनी उंगलियों से पूछा, कि वे किस पर पर्वत को उठाएं.. ?
सबसे पहले, ‘ अंगूठा ‘ बोला : मैं नर हूँ। बाकी उंगलियाँ तो, स्त्रियाँ हैं। अत: आप पर्वत मुझ पर ही उठाएँ।
फिर ‘ तर्जनी ‘ बोली : किसी को यदि चुप कराना हो, या कोई संकेत करना होता है, तो मैं ही काम आती हूँ। इसलिए, आप केवल मुझ पर ही पर्वत उठाएँ।
इसके बाद, ‘ मध्यमा ‘ बोली : सबसे बड़ी होने के साथ – साथ, शक्ति भी रखती हूँ। अत: आप पर्वत मेरे ऊपर ही उठाएँ।
फिर ‘ अनामिका ‘ बोली : सभी पवित्र कार्य मेरे द्वारा ही सम्पन्न होते हैं। मन्दिरों में देवी – देवताओं को मेरे द्वारा ही तिलक लगता है। अत: आप मुझ पर ही पर्वत उठाएँ।
अब भगवान ने, सबसे छोटी उंगली ‘ कनिष्ठा ‘ की ओर देखा… तो उसके नेत्र बरबस ही भर आये। वह भरे नेत्रों के साथ बोली :
भगवान, एक तो मैं सबसे छोटी हूँ। मुझमें कोई गुण भी नहीं है। मेरा कहीं उपयोग भी नहीं होता। मुझमें इतनी शक्ति भी नहीं कि मैं पर्वत उठा सकूँ। मुझे केवल इतना पता है कि ” मैं आपकी हूँ..”
छोटी उंगली की बात सुन कर भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए। और बोले : कनिष्ठे, मुझे ” विनम्रता ही तो पसन्द है।” यदि कुछ पाना हैं, तो विनम्र बनना पड़ेगा। तब श्रीकृष्ण ने ‘ छोटी उंगली ‘ को सम्मान देते हुए उसी पर गोवर्धन पर्वत उठाया।
इससे यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए। विनम्र और सरल बनें।तभी प्रभु आपके हो सकते हैं।
*”जो छोटा बने, सो हरि को पावै..”*
सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे