आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे एक सन्त व एक डाकू की कहानी इस लेख को पूरा पढने के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24***

*अहंकार के सामने हमारे सारे गुण प्रभावहीन हो जाते हैं, इस बुराई से बचना चाहिए-
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पुराने समय में एक डाकू और एक संत की मृत्यु एक ही दिन हुई। दोनों का अंतिम संस्कार भी एक ही श्मशान में हुआ। इसके बाद उनकी आत्मा यमलोक पहुंची। यमराज ने दोनों के कर्मों का हिसाब-किताब देखा और दोनों से कहा कि तुम अपने-अपने कर्मों के बारे में कुछ कहना चाहते हो तो कह सकते हो। डाकू विनम्रता पूर्वक बोला कि प्रभु मैं एक डाकू था और जीवनभर मैंने पाप किए हैं। आप मेरे कर्मों का जो भी फल देंगे, वो मुझे स्वीकार है।
> साधु ने कहा कि हे महाराज, मैंने आजीवन तप किया है। भगवान की भक्ति की है। मैंने जीवन में कभी भी कोई गलत काम नहीं किया। हमेशा धर्म-कर्म में लगा रहा हूं। इसीलिए भगवान मुझे स्वर्ग मिलना चाहिए। यमराज ने दोनों की बातें सुन ली और डाकू से कहा कि अब से तुम्हें इस साधु की सेवा करनी है, यही तुम्हारा दंड है। डाकू इस काम के लिए तैयार हो गया, लेकिन ये सुनते ही साधु गुस्सा हो गया।
> साधु ने यमराज से कहा कि महाराज ये तो पापी है, इसकी आत्मा अपवित्र है, इसने जीवन में कभी कोई अच्छा काम नहीं किया है। ये मुझे स्पर्श करेगा तो मेरा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा।
> साधु की ऐसी बातें सुनते ही यमराज क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति ने जीवनभर लोगों की हत्याएं की है, हमेशा लोगों पर राज किया है, उसकी आत्मा अब विनम्र हो गई है और तुम्हारी सेवा करने के लिए भी तैयार है। जबकि तुमने ने जीवनभर भक्ति और तप किया, लेकिन तुम्हारे स्वभाव में अहंकार है। मृत्यु के बाद भी तुम विनम्र नहीं हुए हो। इस कारण तुम्हारी तपस्या अधूरी है। अब तुम इस डाकू की सेवा करोगे, यही तुम्हारी सजा है।
जीवन प्रबंधन
हमें हमेशा अच्छा काम करना चाहिए, लेकिन कभी भी अच्छे कामों पर घमंड नहीं करना चाहिए। जो लोग अहंकार करते हैं, उनकी सभी अच्छाइयां खत्म हो जाती है। व्यक्ति को हमेशा विनम्र रहना चाहिए।
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*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है।।*

मंगलमय प्रभात
स्नेह वंदन
प्रणाम

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