आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे कि क्या मेरे आराध्य प्रभु मेरी परवाह करतेहै इस लेख को पूरा पढने के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24💐💐💐💐

आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे कि-
*क्या भगवान् को मेरी परवाह है ?*
***********(((****
जब हमारा जीवन अनेक दु:खों एवं परेशानियों के थपेड़ों की चपेट में आ जाता है और दु:खों की आंधी रुकने का नाम ही नहीं लेती तो हमारे मन में प्रश्न उठता है…
https://chat.whatsapp.com/BE3wUv2YB63DeY1hixFx55
क्या भगवान् को मेरी तनिक भी परवाह है या नहीं….??

भगवद्गीता के नवे अध्याय के बाईसवे श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण हमें आशान्वित करते हैं।…..

*अनन्याश्र्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।*
*तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।*

जो भी अनन्य भाव से मेरे रूप का ध्यान करते हुए मेरी आराधना करते हैं, जो भी उनके पास है मैं उसकी रक्षा करता हूँ और जो नहीं है उसे लाकर देता हूँ।

जीवन की किसी भी परिस्थिति में यदि हम श्रीकृष्ण की ओर मुड़ेंगे तो वे हमारा ध्यान अवश्य रखेंगे। वे तो हमारी देखभाल हमेशा ही कर रहे हैं, परमात्मा के रूप में वे हमारे हृदय में विराजमान हैं और हमारी सभी इच्छाओ पर निगरानी रख उनका अनुमोदन करते हैं। इस जगत् की सभी वस्तुएँ जैसे कि फल, फूल, अन्न, जल, वायु, सूर्य की रोशनी, अग्नि इत्यादि सभी उनसे ही तो आते हैं।

ये तो हम ही हैं जो अपने स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण उनकी उपस्थिति और योगदान का अनुभव नहीं कर पाते।यद्यपि हमारी लगभग सभी महत्वकांक्षायें स्वयं के भोग के लिए होती हैं और वे हमें अपने मूल स्वरूप जो कि भगवान् के सेवक बनने से दूर ले जाती हैं किन्तु फिर भी भगवान् हमारी स्वतन्त्रता में दखल नहीं देते और चुपचाप हमारी इच्छाओ को मंजूरी देते रहते हैं। उन्हें धन्यवाद देने की जगह हम उन पर आरोप लगाते हैं कि मेरे जीवन में दु:ख आ रहे हैं किन्तु इन दु:खों का आना तो इस भौतिक जगत् के नियमानुसार ही है, क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टि की समस्त वस्तुएँ भगवान् की सम्पत्ति है और उन्हीं के आनंद के लिए बनी हैं और जब भी हम इस भौतिक जगत् की वस्तुओ को भगवान् को अर्पित किए बिना अपने भोग के लिए लेंगे तो वह दु:ख का कारण अवश्य ही बनेगी।

लोग कहते हैं कि भगवान् ने इस भौतिक जगत् के नियम ऐसे क्यों नहीं बनाए जिससे कि हम उनके बिना भी सभी वस्तुओ का भोग विलास कर सके और कोई दु:ख भी न आए।

यदि वे ऐसा करते तो हम कभी भी उनकी ओर मुड़ने का नाम नहीं लेते, और उनकी ओर न मुड़ने का अर्थ है – असीमित शाश्वत् सुख से मुड़ना क्योंकि वे ही परम आनंद के भण्डार हैं। इस भौतिक जगत् के सुख तो उनके संग में प्राप्त सुख के सागर के समक्ष एक बूँद के बराबर भी नहीं हैं।

ये श्रीकृष्ण की असीम कृपा ही तो है कि वे जब भी हम उनसे विमुख होकर सुखी होने का मिथ्या प्रयास करते हैं, हमारे दु:खों के द्वारा वे हमें उनकी ओर मुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं। हमारी परवाह और देखभाल करने का दूसरा रूप ही ये दु:ख हैं। और इन दु:ख भरी परिस्थितियों में यदि हम उनकी ओर मुड़कर हृदय से प्रार्थना करते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक स्मरण करेंगे तो अवश्य ही हम उनकी कृपा को अनुभव कर पायेंगे।

यदि हम किसी व्यक्ति के प्रेम का अनुभव करना चाहते हैं तो हमें अपने बारे में न सोचकर कि मुझे क्या चाहिए, यह भी सोचना होगा कि उस व्यक्ति को क्या चाहिए? और जब हम दूसरे व्यक्ति की इच्छाओ को ध्यान में रखेंगे तो ही प्रेम का आ दान-प्रदान सम्भव है।

श्रीकृष्ण मैं आपसे प्रेम करती हूँ, आपसे विमुख होकर मैं दु:खों के बवंडर में फँस गई हूँ, आपको स्मरण करने हेतु कृपया मेरी सहायता कीजिए। मुझे आपकी विस्मृति कभी न हो, सुख में या दु:ख में सभी परिस्थितियों में मैं सदैव आपसे प्रेम करती रहूँ।

यदि एक बार भी श्रीकृष्ण की ओर मुड़कर हम इस नि:सहाय भावना से उन्हें पुकारेंगे तो अपनी चेतना में एक बड़ा परिवर्तन पायेंगे और उनके द्वारा की जाने वाली देखभाल का अनुभव कर पायेंगे।

सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *