गोपाल की उल्टी रीति इस लैख को पूरा पडने के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 

आध्यात्मिक ज्ञान मै आज आप देखे-
*गोपाल की उल्टी रीति है-
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
उल्टी रीति == अगर कोई बुलाता है तब भी उसके पास नहीं जाते, और कभी कोई नहीं भी बुलाता तो उसके पास जरूर जाते हैं।
नित्य लीला स्थली श्री धाम वृंदावन के काम्यवन में श्री जयकृष्ण दास बाबा जी गोप-बालकों के उत्पात से तंग आकर विमलकुण्ड़ के किनारे एकांत कुटिया में रहकर भजन किया करते थे।
https://chat.whatsapp.com/BE3wUv2YB63DeY1hixFx55
श्री जयकृष्ण दास बाबा जी हर समय भजन में लीन रहते थे। केवल एक बार मधुकरी के लिए ग्राम में जाया करते और शेष समय दिन-रात हरिनाम जपते।
एक दिन मध्याह्न में सिद्ध जयकृष्ण दास बाबा जी की अन्तरंग सेवा में ठाकुर जी की एक ऐसी घटना घटी कि वे’ श्रीकृष्ण’ विरह में व्याकुल होने लगे। हुआ यह कि उस समय विमला कुण्ड के चारों ओर असंख्य गाय और गोप-बालक आकर उपस्थित हुए।
गोप-बालक बाहर से चीखकर कहने लगे :- “बाबा प्यास लगी है, जल प्याय दे।”
जयकृष्ण दास बाबा तो पहले से ही गोप-बालकों के उत्पात से परेशान थे, इसलिए बाबा चुपचाप अपनी कुटिया में बैठे रहे।
पर ठाकुर जी कहाँ मानने वाले थे? अपने गोप-सखाओं के साथ तरह-तरह के उत्पात करने लगे।
कुटिया के दरवाजे के पास आकर बोले :- “अरे ओ बँगाली बाबा! हम जाने हैं तू कहाँ भजन करे है। दयाहीन बाबा कसाई के बराबर होय हैं।
अरे बाबा कुटिया से निकलकर जल प्याय दे, हमको बड़ी प्यास लगी है।”
अब गोप-बालक बाबा को परेशान करने लगे।
जयकृष्ण दास बाबा बालकों के उत्पात से क्रुद्ध हो लकड़ी हाथ में लेकर कुटिया से बाहर निकल पड़े। बाबा जैसे ही कुटिया से बाहर आये तो देखा कि कुटिया के चारों तरफ असंख्य गाय और गोप-बालक हैं। सभी गोप-बालक एक से बढ़कर एक सुंदर। एक से बढ़कर एक अदभुत और मनमोहक श्रृंगार।
उन गोप-बालकों को देखकर जयकृष्ण दास बाबा जी का क्रोध ठंडा पड़ गया।
जयकृष्ण दास बाबा ने गोप-बालकों से पूछा:- “लाला, तुम सभी कौन गाँव से आये हो?”
सभी बालकों ने एक साथ जवाब दिया:- “नंदगाँव तें।”
बाबा ने एक बालक को पास बुलाकर प्रेम से पूछा :- “तेरा नाम क्या है?”
बालक ने कहा :- “मेरा नाम ‘कन्हैंया’ है।”
एक और बालक से बाबा ने पूछा:- “लाला तेरा नाम क्या है?”
बालक ने कहा:- “बलदाऊ ! मेरा नाम ‘बलदाऊ’ है।”
तब गोप बालक कन्हैया ने कहा :- “देख बाबा जी पहले पियाय दे, पाछे बात करियो।”
बाबा ने स्नेह परवश हो करुवे से गोप-बालकों को जल पिला दिया।
बालक ने कहा :- “देख बाबा हम नित्य किते दूर से आवें है, प्यासे जायं हैं। तू कछु जल और बालभोग राख्यो कर।”
“नहीं-नहीं रोज-रोज आकर अपाधि नहीं करना”, कहते हुए बाबा कुटिया में चले गये।
बाबा कुटिया में आकर सोचने लगे :- “ऐसे सुंदर मनमोहक बालक और ऐसी सुंदर गायें तो मैंने कभी नहीं देखीं, न कभी ऐसी मधुर बोली ही सुनी। ये इस जगत के थे या किसी और जगत के!”
यह सब सोचते हुए जयकृष्ण दास बाबा जी उन गोप-बालकों को एक बार फिर देखने को जैसे ही कुटिया से बाहर निकले, वहाँ न गायें थीं और न ही कोई गोप बालक। दूर दूर तक गायों तथा बालकों के कोई चिन्ह नहीं थे।


जयकृष्ण दास बाबा दुःखित और अनुतप्त हो अपने दुर्भाग्य और गोप-बालकों के प्रति अपने अंतिम वाक्य ‘रोज-रोज आकर अपाधि नहीं करना’ की बात सोचते सोचते आविष्ट हो गये।
बाबा रात भर ‘प्रिया प्रियतम’ की याद में अश्रु-विसर्जन करते रहे।
उसी समय ‘भगवान श्रीकृष्ण’ बाबा के सामने उपस्थित हो उन्हें सान्त्वना देते हुए बोले :- ‘बाबा, दुःख मत कर कल मैं तेरे पास आऊँगो।’
तब श्री जयकृष्ण दास बाबा जी का आवेश भंग हुआ और उन्होंने धैर्य धारण किया।
दूसरे दिन एक वृद्धा व्रज माई जयकृष्ण दास बाबा की कुटिया में गोपाल की एक मूर्ति लेकर आई और बाबा से बोली :- “बाबा, मोपे अब गोपाल की सेवा नाय होय। बाबा, आज से तू मेरे गोपाल की सेवा किया कर।”
जयकृष्ण दास बाबा ने कहा :- “माई, मैं कैसे इनकी सेवा करूँगा? रोज सेवा की सामग्री और भोग कहाँ से लाऊँगा?”
“बाबा, तू बस सेवा किया करना सेवा की सामग्री मैं रोज आकर दे जाऊँगी।”
गोपाल को बाबा को देकर ऐसा कहते हुए वृद्धा माई चली गई। गोपाल जी की रूप माधुरी देख बाबा मुग्ध हो गये।
उसी रात जयकृष्ण दास बाबा को स्वप्न में वृद्धा माई ने श्री वृन्दा जी के रूप मे दर्शन दिये।
गोपाल की उल्टी रीति है।
अगर कोई बुलाता है तब भी उसके पास नहीं जाते, और कभी कोई नहीं भी बुलाता तो उसके पास जरूर जाते हैं।
ऋषि मुनि भी बुला-बुलाकर हार जाते हैं, उनके मानस पटल पर भी कभी उदय नहीं होते। पर उनके प्रेमी भक्त उन्हें नहीं भी बुलाते तो हाथ धोकर अपने भक्त के पीछे पड़ जाते हैं।
जयकृष्ण दास बाबा ने उनके आने को उपाधि मानकर उनसे यही कहा था न ‘रोज-रोज आकर अपाधि नहीं करना’ इसलिए आज ठाकुर जी बाबा के पास आकर ऐसे जमकर बैठे कि जाने का नाम भी नहीं लेते

सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *