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चैत्र नवरात्रि 2025 तिथि पूजन शुभ मुहूर्त*
उदयातिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्र रविवार, 30 मार्च रविवार 2025 से ही शुरू होने जा रही है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि के लिए कलश स्थापना के दो विशेष मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं.
पहला मुहूर्त प्रतिपदा के एक तिहाई समय में कलश स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो 30 मार्च 2025 को सुबह 06:14 से 10:21 बजे तक है.।
दूसरा मुहूर्त, अभिजीत मुहूर्त, 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:02 से 12:50 बजे तक है, जब कलश स्थापित किया जा सकता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घटस्थापना का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल होता है, जिसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दौरान किया जाता है. यदि इस समय चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग उपस्थित हो, तो घटस्थापना को टालने की सलाह दी जाती है.
घटस्थापना का महत्व क्या है?
कलश स्थापना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है.
कलश के मुख पर – भगवान विष्णु
गले में – भगवान शिव
नीचे के भाग में – भगवान ब्रह्मा
मध्य में – मातृशक्ति (दुर्गा देवी की कृपा)
इसलिए, घटस्थापना का सही समय और विधि अपनाकर देवी की कृपा प्राप्त की जा सकती है.
घटस्थापना की सही विधि
साफ-सफाई करें: जिस स्थान पर घटस्थापना करनी है, वहां गंगाजल का छिड़काव करें और उसे पवित्र करें.
मिट्टी का पात्र लें: इसमें जौ बोएं, जो समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं.
कलश की स्थापना करें: मिट्टी के घड़े में जल भरें, उसमें गंगाजल, सुपारी, अक्षत (चावल), दूर्वा, और पंचपल्लव डालें.
नारियल रखें: कलश के ऊपर लाल या पीले वस्त्र में लिपटा हुआ नारियल रखें.
मां दुर्गा का आह्वान करें: मंत्रों का जाप करें और कलश पर रोली और अक्षत अर्पित करें.
नवरात्रि के दौरान दीप जलाएं: घटस्थापना के साथ अखंड ज्योति प्रज्वलित करें, ताकि घर में सुख और शांति बनी रहे.
घटस्थापना के लाभ
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है.
देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं.
मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास है.
घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है.
इस शुभ महोत्सव में ही कलश की स्थापना कर अच्छा रहेगा। दुर्गा जी के नौ भक्तों में सबसे पहले शैलपुत्री की आराधना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि 2025 के कार्यक्रम—-
चैत्र नवरात्रि 2025 का 9 दिनों का पूजा कैलेंडर
नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है।
प्रत्येक दिन एक देवी का पूजन किया जाता है, और हर देवी के स्वरूप में अलग-अलग प्रकार की शक्ति और आशीर्वाद समाहित होते हैं।
इस बार नवरात्रि 8 दिन की होगी
लेकिन ज्वारे विसर्जन नवम दिन 7 अप्रैल को ही होगा
दिन तिथि वार देवी पूजा
🍁प्रतिपदा 30 मार्च 2025 रविवार मां शैलपुत्री
🍁द्वितीया 31 मार्च 2025 सोमवार मां ब्रह्मचारिणी
🍁तृतीया 1 अप्रैल 2025 मंगलवार मां चंद्रघंटा
🍁चतुर्थी /पंचमी 2 अप्रैल बुधवार मां कूष्मांडा/ स्कंदमाता
🍁षष्ठी 3 अप्रैल 2025 गुरुवार मां कात्यायनी
🍁सप्तमी 4 अप्रैल 2025 शुक्रवार मां कालरात्रि
🍁अष्टमी 5 अप्रैल 2025 शनिवार मां महागौरी
🍁नवमी 6 अप्रैल 2025 रविवार मां सिद्धिदात्री
*पूजा विधि एवं कलश स्थापना*
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त का समय
पहला मुहूर्त प्रतिपदा के एक तिहाई समय में कलश स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो 30 मार्च 2025 को सुबह 06:14 से 10:21 बजे तक है.।
दूसरा मुहूर्त, अभिजीत मुहूर्त, 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:02 से 12:50 बजे तक है, जब कलश स्थापित किया जा सकता है.
आप इन दोनों शुभ मुहूर्त में घट स्थापना कर सकते हैं और इस त्योहार को मना सकते हैं.।
*घट स्थापना करने के लिए आपको इस विधि को पूरा करना होगाए*.
*सबसे पहले प्रतिपदा तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूजा करने का संकल्प ले फिर उसके बाद पूजा स्थल की सजावट करें.
*उस स्थान पर चौकी रखें जहाँ पर कलश में जल भरना है, इसके बाद कलश को कलावे से लपेट लें और उसके ऊपर आम और अशोक के पत्ते रखें.
*इसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखा था, इसके बाद धूप दीप जलाकर माँ दुर्गा का आह्वान करें और चैत्र नवरात्रि के त्योहार को मनाएं.
कहा जाता है कि शास्त्रों में माँ दुर्गा की पूजा उपासना की बतायी गई विधि से जो कोई अच्छे और सच्चे मन से पूरा करता है उसे नवरात्रि में ज़रूर फल मिलता है.
इस नौ दिनों में दुर्गा मां की पूजा के अलग-अलग मानक बताए जाते हैं। नवरात्र में सबसे पहले दिन कलश स्थापना होती है ।साथ में मां शैलपुत्री की पूजा
की जाती है। कलश में त्रिदेव और कुलदेवता का भी निवास
माना जाता है।साथ में जिस देवता की पूजा में कलश स्थापना होती हैं उसका प्रतीक भी कलश माना जाता है।
माता के गृहस्थ भक्त नवरात्रि पर्व (नवरात्रि महोत्सव) दो बार मनाते है।
एक चैत्र माह में, दूसरा आश्विन माह में आश्विन मास की वर्ष की नवरात्रि के दौरान भगवान राम की पूजा और धार्मिक महत्व होता है। आश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नक्षत्र भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त बर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि भी
आती है जिन्हें साधक और साधु संत अपनी साधना कर मनाते हैं।
नवरात्रि के दिन सबसे पहले नित्य कर्म से निवृत्त साफ पानी से स्नान कर लें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना।
(पूजा काल में नीले ,काले रंग के वस्त्रों को धारण नहीं करना चाहिए।)
इसके बाद कलश की स्थापना होनी चाहिए। एक कलश में आम के पत्ते और पानी डालें। कलश पर पानी वाले नारियल को लाल वस्त्र या फिर लाल मौली में बांध कर रखें।
इसमें एक बादाम, दो सुपारी, एक सुपारी जरूर डालें।
मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्ध, आचमय, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, आदि से पूजन करें।
माँ दुर्गा को फल और मिठाई का भोग। धूप, अगरबत्ती से माता रानी की आरती उतारें।
इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ दुर्गा स्तुति करें।
आप चाहें तो चालीसा सहस्रनाम , १०८ नाम या कोई देवी स्तोत्र या मंत्र जाप कर सकते हो इसके बाद दुर्गाजी की आरती करके प्रसाद चढ़ाएं।
*नवरात्रि में माता के ज्वारे बोने की विधि*
*इस बार चैत्र नवरात्रि 2025 में 8 दिन की होगी*
लेकिन ज्वारे विसर्जन नवम दिन 7 अप्रैल 2025 को
नवम दिन ही होगा
नवरात्रि में माता की स्थापना में जौ के ज्वारे बोये जाते हैं। किसी नये मिट्टी के बर्तन में साफ मिट्टी लेकर उसमें अच्छी किस्म के मोटे जौ बिखेर कर उसके ऊपर लगभग आधा इंच मिट्टी की परत बिछा देंवें। पूजा स्थान पर जहां आप कलश की स्थापना करना चाहते हैं, वहां पर चावल की गोलाकार या पुष्प की आकृति बनाकर, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन को स्थापित कर देवें।
नवरात्रि स्थापना के दिन पूजा कै समय उसमें आवश्यकता अनुसार पानी भर देवें। पानी इतना ही भरें जितना मिट्टी सोख लेवे। मिट्टी के ऊपर पानी भरा हुआ नहीं रहना चाहिए। उसके बाद उस बर्तन के बीचो बीच मिट्टी का छोटा नया कलश पानी से भर के रख दें । कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्ते चारों तरफ रखते हुए बीच में मोली से बंधा हुआ एक नया नारियल रख देंवें। पूजा में कलश स्थापना के समय इस कलश की यथा विधि पूजा करें।
अगले 3 दिन तक उनमें पानी नही भरें। तीसरे दिन जौ अंकुरित होने लगेंगे। पांचवें- छठे दिन करीब 6 इंच के ज्वारे होने पर उनको कलश के चारों तरफ मोली से बांध देंवें। चौथे -पांचवें दिन से आप थोड़ा थोड़ा जल डाल सकते हैं। वैसे कलश का पानी रिस रिस कर ज्वारों को गीला रखेगा, लेकिन फिर भी कुछ पानी डाल सकते हैं । अष्टमी या नवमी के दिन आपके ज्वारे 9 इंच से लेकर 1 फीट तक की हो सकते हैं।
*अखंड ज्योति स्थापना*
बहुत से भक्त नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाते हैं।
यह आवश्यक नहीं अपनी श्रद्धा और व्यवस्था पर
निर्भर करता है।आप चाहें तो केवल सुबह शाम
दीपक जलाकर भी मां की भक्ति कर सकते हैं।
अखंड ज्योति जलाने के लिए आप सबसे पहले यह निश्चित करें कि अखंड दीपक सरसों के तेल का रखना चाहते हैं या गाय के शुद्ध देसी घी का रखना चाहते हैं। घी का दीपक रखने के लिए किसी बड़ी कटोरी में पिघला हुआ घी लेकर रुई की फूल बत्ती से जलाया जाता है। तेल का दीपक मिट्टी के बड़े दीपक में तेल में लंबी रुई की बत्ती से जलाया जाता है।
पूजा स्थान पर जहां आप दीपक की स्थापना करना चाहते हैं, वहां पर चावल की गोलाकार या पुष्प की आकृति बनाकर, उसके ऊपर कटोरी या मिट्टी का दीपक स्थापित कर देवें।
नवरात्रि स्थापना के दिन कलश पूजन के बाद दीपक की भी यथा विधि पूजा की जाती है। घी के दीपक में बत्ती पर काजल नहीं आता। अखंड दीपक के लिए दिन में समय-समय पर उसको संभालते रहें और आवश्यकता अनुसार घी की पूर्ति करते रहें।
आप तेल के दीपक में बत्ती पर काजल आ जाता है अतः समय-समय पर उसको छोटी चिमटी से हटाना पड़ता है। तेल के दीपक में बत्ती के सहारे तेल बाहर भी निकलता रहता है अतः तेल के दीपक के नीचे एक बड़ा खाली कटोरा रखना जरूरी होता है ताकि तेल पूजा स्थान पर नहीं फैले और उस कटोरे में इकट्ठा होता रहे। घी के दीपक के बजाय तेल के दीपक की देखभाल ज्यादा कठिन होती है।
दीपक को हवा से बचाव रखना जरूरी होता है ।यदि पूजा स्थान में हवा आने की संभावना हो तो दीपक को कांच के खुले गोले से ढका जा सकता है। दीपक को रात के समय भी एक दो बार संभाल लेना चाहिए। यदि दीपक की बत्ती बदलना आवश्यक हो तो पहले पुरानी बस्ती से नई बत्ती जला कर उसके बाद पुरानी बत्ती को हटा सकते हैं। ध्यान रखें कि नई और पुरानी दो बत्तीयों में से एक बत्ती लगातार चलती रहे, वरना आपका दीपक अखंड नहीं रह सकेगा।
(इसके साथ ही अखंड ज्योति को चूहों से बचाकर रखने की भी व्यवस्था और सुरक्षा करनी चाहिए।चूहे दीपक की
बत्ती खींच कर ले जाते हैं इससे अप्रिय घटना और हानि की आशंका रहती है।)
पहली बार दीपक को अखंड रखने में असुविधा हो सकती है, लेकिन अगली बार विशेष परेशानी नहीं होती। आशा है उपरोक्त विधि आपके लिए लाभदायक होगी।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के समय बोए गए जौ को अष्टमी व नवमी के दिन विसर्जित करना चाहिए।
1.नवरात्रि पर बोए गए जौ जिस तरह हरियाली लाते हैं, वहीं इनका रंग आपके जीवन में होने वाली चीजों का संकेत देते हैं। अगर जौ का रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा है तो यह इस बात का संकेत है कि आने वाले साल का आधा समय तो आपके लिए अच्छा रहेगा। जबकि बाकी बचे हुए वर्ष में आपको थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
2.अगर नवरात्रि में बोए गए जौ सफेद या हरे रंग के उगते हैं तो इसे एक अच्छा संकेत माना जाता है। कहते हैं कि इससे देवी मां की आप पर कृपा होगी और आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
3..मेरे समझ से गेहूं की फसल की बुआई का समय भी
नवरात्र के बाद ही शुरू होता है। इसलिए यह माता जगदंबिका जो प्रकृति या योगमाया / दुर्गा कहलातीं है जो निराकार ब्रहम और सदाशिव / सत्यनारायण की शक्ति है। उसके प्रति सम्मान दिखाने का तरिका है और ज्योति प्रकाश का प्रतीक है कयोंकि ईश्वर उपासना से अंधकार खत्म हो जाता है
*नवरात्रि व्रत कथा:*
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं।
यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाहना वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है। जो मनुष्य इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है और कष्ट व रोग से पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित हो, भूख और प्यास से व्याकूल घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन हो जाता है।
जो सधवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना दुखों को भोगती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे। हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्माण मनुष्यों का कल्याम करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।
ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।
पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।
जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।
उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।
तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु (ठीक है) ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
महातम्य- इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें।
खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्6य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शरक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है!