*संगत का असर*
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एक चींटी जब पुष्प का संग करती है तो वह भगवान के श्री चरणों तक जा पहुँचती है और भगवान को चढ़ने वाला प्रसाद वह सहजता से ग्रहण कर लेती है*,
परन्तु जब वही चींटी आग लगी हुई लकड़ी का संग करती है तो वह जलकर भस्म हो जाती है मिट्टी मे मिलकर खाक हो जाती है। *चींटी वही है फर्क केवल संगत का है।*
*हम भी वहीँ है बस किसी को संगत निहाल कर जाती है तो किसी को बर्बाद*
जिंदगी मे और किसी बात का ध्यान रख पाए अथवा नही परन्तु *अपनी उठ बैठ का ध्यान बहूत विशेष तौर पे रखना चाहिए* क्योंकि ये बना बनाया *खेल बिगाड़* भी देती है और *बिगडा हुआ खेल बना भी देती है।*
*मूरखों की संगत करने से ज्ञान का विनाश तथा क्रोध मे बढ़ोत्तरी होती है।*
हरि से विमुख होने पर गलत व्यक्तियों के प्रभाव मे जीवन चला जाता है और फिर पाप का पलडा भारी होने लगता है इसलिये पाप को यदि घटाना है तो निरंतर हरि के गुण गाते रहो।
सब प्रकार के भोग भोगते रहने से तेज घटता है,भोगी समाप्त हो जायेगा पर भोग नही।
यदि हम किसी से लगातार कुछ माँगते रहते है तो फिर निश्चित मानकर चलना की वहाँ से प्रेम विलुप्त हो जायेगा।
यदि हमारा चित्त भ्रमित है तो फिर ध्यान घट जाएगा।
परिवार जनों की संगति से मोह में बढ़ोतरी होती है।
सज्जनों की संगति से विचार, बुद्धि और विवेक मैं बढ़ोतरी होती है।
गुणवान लोगो की संगति से ज्ञान में बढ़ोतरी होती है।
हरि गुणगान,हरि सेवा और हरी सत्संग से समस्त प्रकार की चिंता,विषाद,ओर व्याधि से मुक्ति मिलती है।
*जिंदगी में जिसने हरि गुण गाया उसने सबकुछ पाया..!!*
सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा।
*सदा जपे महामंत्र*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे