जयश्री कृष्ण
भीष्म पितामह के पांच तीर🏹-
दुर्योधन यदि भीष्म के वो पांच तीर नहीं देता तो पांडव कभी के मारे जाते।
महाभारत से इतर भी महाभारत से जुड़ी कई कथाएं मिलती है। मान्यताओं पर आधारित ऐसा कई कथाएं समाज में प्रचलित है। पौराणिक मान्यता अनुसार जब कौरवों की सेना पांडवों से युद्ध हार रही थी तब दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और उन्हें कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। मैं जानता हूं कि आपका पांडवों के प्रति अनुराग है और आप उन्हें ही जीताना चाहते हैं।
यह सुनकर भीष्म पितामह भयंकर क्रोधित और निराश हुए। तब उन्होंने अपनी निष्ठा एवं दृढ़ता को प्रकट करने के लिए तुरंत ही पांच सोने के तीर लिए और उन्हें मंत्रों की शक्ति से युक्त करने लगे। मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल युद्ध में इन पांच तीरों से वे पांडवों को मार देंगे। पांडवों के मारे जाने से युद्ध का अंत हो जाएगा और तुम्हारी जीत निश्चित हो जाएगी।
लेकिन दुर्योधन की मूर्खता की भी कोई सीमा नहीं थी। उसने महाभारत में कई गलतियां की थी। उन्हीं गलतियों में से एक यह गलती भी थी कि उसने भीष्म की बातों पर विश्वास नहीं किया और इसे मजाक समझा। ऐसे में उसने भीष्म से वह पांचों तीर ले लिए और कहा कि वह उन्हें कल सुबह यह तीर दे देगा। अभी यह पांचों तीर मेरे ही पास रहेंगे।
सूर्यास्त के युद्ध पश्चात सभी अपने अपने शिविरों में रहते हैं। वहां भगवान कृष्ण को जब यह पता चला कि भीष्म ने पांडवों को मारने के लिए कोई पांच चमत्कारिक अचूक तीरों का निर्माण किया है तो उन्होंने तुरंत अर्जुन को बुलाया और कहा कि तुम इसी वक्त दुर्योधन के पास जाओ और उससे कहो कि मैं आज कुछ मांगने आया हूं क्योंकि तुमने ही कहा था कि गंधर्वों से मेरी जान बचाने के लिए तुम मुझसे कुछ मांग लो लेकिन तब मैंने तुमसे कुछ नहीं मांगा था। आज मांगने आया हूं क्या तुम देने के लिए तैयार हो?
अर्जुन दुर्योधन के पास जाकर ऐसा ही कहते हैं और वे दुर्योधन के शिविर में जाकर दुर्योधन की अपने वादे की बात याद दिलाते हैं, जबकि अर्जुन ने एक बार दुर्योधन को गंधर्वों से बचाया था।
दुर्योधन कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है और फिर कहता है। अच्छा, मांग लो।
तब अर्जुन उनसे पुन: वचन लेता है कि क्या तुम सचमुच वचनबद्ध हो और मुझे वह दोगे जो मैं मांगूगा।
दुर्योधन कहता है कि अब मांग ही लो। मैं वचनबद्ध हूं। निश्चित ही मेरा वचन खाली नहीं जाएगा।
तब अर्जुन कहता है कि मुझे वो पांच तीर चाहिए जो तुम्हें भीष्म से दिए हैं।
क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन ने अपने वचन को पूरा किया और तीर अर्जुन को दे दिए।
पांडवों को मारने के ऐसे कई मौके आए थे जबकि दुर्योधन आसानी से पांडवों को मार सकता था लेकिन उसने हर बार मौकों को गंवाया ही था।
सोने के 5 दिव्य तीर जिनसे भीष्म करना चाहते थे पांडवों का वध, लेकिन दुर्योधन की एक गलती ने पलट दिया!!
महाभारत में भीष्म के सोने के तीरों की कहानी!!!!!! महाभारत की एक कहानी के अनुसार भीष्म पांडवों को युद्ध के 11वें दिन ही मार देते लेकिन दुर्योधन की गलती ने पांडवों की मौत को टाल दिया और महाभारत का पूरा इतिहास बदल गया। महाभारत की यह कहानी भीष्म के पांच सोने के बाणों से जुड़ी हुई है। इन सोने के तीरों को भीष्म ने पांडवों के लिए अभिमंंत्रित किया था। आइए, जानते हैं महाभारत की कहानी।
महाभारत में पांडवों के साथ श्रीकृष्ण थे, इसलिए पांडवों की शक्ति कौरवों से कहीं ज्यादा बढ़ गई थी। कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर श्रीकृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से शस्त्र नहीं उठाएं लेकिन अर्जुन का सारथी बनकर श्रीकृष्ण युद्ध भूमि में अर्जुन का मार्गदर्शन करते रहे। दूसरी तरफ कौरवों के साथ श्रीकृष्ण की नारायणी सेना थी। भीष्म जैसे और भी कई योद्धा कौरवों को शक्तिशाली बनाने के लिए काफी थे लेकिन अक्सर मन में यह सवाल उठता है कि जो भीष्म हजारों योद्दाओं पर अकेले भारी थे, तो पांडवों के सामने उनका बल आधा कैसे रह गया? क्या भीष्म ने जानबूझकर अपनी पूरी शक्ति लगाकर पांडवों का अंत नहीं किया? या फिर कैसा कौन-सा कारण था, जिसकी वजह भीष्म पांडवों का वध नहीं कर सके। महाभारत में इससे जुड़ी एक कहानी मिलती है। महाभारत की इस कहानी के अनुसार दुर्योधन की एक गलती की वजह से महाभारत का पूरा खेल पलट गया था। आइए, जानते हैं महाभारत की वो कहानी।
प्रधान सेनापति भीष्म 10 दिनों तक पांडव सेना पर पड़े भारी!!!!!!!
कौरवों के प्रधान सेनापति भीष्म 10 दिनों तक पांडव सेना पर भारी पड़े थे। भीष्म इतने निपुण योद्धा थे कि एक ही दिन में हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया करते थे लेकिन दुर्योधन भीष्म पितामहा से खुश नहीं था क्योंकि कहीं न कहीं उसे ऐसा लगता था कि भीष्म जानबूझकर पांडवों का साथ देते हैं और उन्हें मारना नहीं चाहते। यही सोचकर दुर्योधन को भीष्म से सीधे बात करने का विचार आया। यही सोचकर दुर्योधन भीष्म के शिविर में पहुंचा।
दुर्योधन ने भीष्म को याद दिलाई कर्तव्यनिष्ठा
दुर्योधन भीष्म के पास पहुंचा, तो भीष्म चिंतनशील होकर शिविर में बैठे थे। यूं आधी रात को दुर्योधन को अपने शिविर में प्रवेश करते देख भीष्म हैरान हुए। उन्होंने दुर्योधन से शिविर में आने का कारण पूछा, तो दुर्योधन ने गुस्से में कहा “पितामहा! आपके अन्याय के कारण मैं आधी रात को आपके शिविर में आने के लिए विवश हुआ हूं। आप अगर पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ पांडवों के साथ युद्ध करते, तो शायद मुझे यहां नहीं आना पड़ता। 10 दिन हो चुके हैं लेकिन आप अभी तक पांडवों को पराजित नहीं कर पाए हैं। मुझे तो लगता है कि आप केवल लड़ने का अभिनय कर रहे हैं। आपको आज भी पांडवों से प्रेम है और आप मेरे खेमे में रहते हुए भी मेरे शत्रु बने हुए हैं।” दुर्योधन के मुख से ऐसी बात सुनकर भीष्म बहुत दुखी हो गए।
भीष्म ने मंत्रों की शक्ति से तैयार किए पांच सोने के तीर
दुर्योधन के मुख से कटु वचन सुनकर भीष्म को हस्तिनापुर राज्य के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा का एक बार फिर से स्मरण हो गया। भीष्म ने अपनी शस्त्र विद्या का प्रयोग करते हुए सोने के पांच तीर निकाले और इसे अभिमंत्रित करके बोले- “दुर्योधन! तुम व्यर्थ में मेरी कर्तव्यनिष्ठा पर संदेह करते हो। मैं कल एक ही दिन में पांचों पांडवों को इन बाणों से समाप्त कर दूंगा। फिर पांडवों मे मरते हुए युद्ध का परिणाम तुम्हारे पक्ष में आने लगेगा।” भीष्म पितामहा की बात सुनकर दुर्योधन प्रसन्न हुआ लेकिन फिर भी उसके मन से संदेह नहीं गया।
दुर्योधन ने भीष्म से मांग लिए सोने के तीर
दुर्योधन भीष्म की बातों को सुनकर प्रसन्न तो हुआ लेकिन खुद छल-कपट में माहिर रहे दुर्योधन को भीष्म की बातों में भी छल-कपट ही नजर आया। दुर्योधन ने भीष्म से कहा- “पितामहा! आपकी योजना बहुत अच्छी है लेकिन मुझे फिर भी संदेह हो रहा है कि कहीं आप फिर से पांडवों के प्रति प्रेम और भावनाओं में आकर अपने कर्तव्य से विमुख न हो जाओ। मुझे संदेह है कि युद्ध के अंतिम पलों में जब आपके पास पांडवों को मारने का पूरा अवसर होगा, तो आप अपने बाणों को रोक सकते हो, इसलिए मुझे आप मुझे ये बाण दे दो। मैं युद्ध भूमि पर आपको ये पांचों बाण लौटा दूंगा। तब आप मेरे सामने पांडवों का वध कर देना।” दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म ने पांचों अभिमंत्रित बाण दुर्योधन को दे दिए। दुर्योधन अपनी जीत पर बहुत खुश था लेकिन उसे नहीं पता था कि आगे जाकर यही भूल उस पर कितनी भारी पड़ने वाली है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया मृत्यु से बचने का मार्ग
भगवान श्रीकृष्ण भीष्म के सोने के बाण के रहस्य को जानते थे। भीष्म के शिविर के पास पहरा दे रहे एक गुप्तचर ने भी श्रीकृष्ण को आकर इस बात की सूचना दी। इस बात को सुनकर श्रीकृष्ण तुंरत ही अर्जुन के शिविर में पहुंचे और उसे पूरी घटना बताई। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि “पार्थ! तुम दुर्योधन से वे पांचों बाण मांग लो।” श्रीकृष्ण की बात सुनकर अर्जुन ने हैरानी से कहा कि दुर्योधन भला वो तीर अर्जुन को क्यों देगा? तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि एक बार अर्जुन ने दुर्योधन को यक्ष और गंधर्वो के हमले से बचाया था, तब दुर्योधन ने प्रसन्न होकर अर्जुन से कहा था कि वो कोई भी कीमती चीज दुर्योधन से मांग सकता है। उस दिन अर्जुन ने बात को टालते हुए दुर्योधन से कुछ नहीं मांगा था। अर्जुन को श्रीकृष्ण की बात याद आ गई और वे दुर्योधन के शिविर में पहुंचा। अर्जुन ने दुर्योधन से वही पांच बाण मांगे लेकिन दुर्योधन ने अर्जुन को मना कर दिया। तब अर्जुन ने दुर्योधन को उस घटना को याद दिलाते हुए अपना क्षत्रिय धर्म निभाने के लिए कहा। ये सुनकर दुर्योधन ने पांचों बाण अर्जुन को दे दिए। इस तरह भीष्म ने बाण लेने की गलती दुर्योधन पर भारी पड़ी और पांडवों की मौत टल गई।
।। हर हर महादेव श्री शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।।