आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आपदेखे एक कछुए की कहानी इस लेख को पूरा पढने के लिए नीचेदीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24*****

आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे –
* एक कछुए की कथा…*
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सुना है की एक कछुए बेचारे ने प्रभु चरणों की महिमा सुनी और उन चरणों मे जाना चाहा, तो पूछने लगा सबसे कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं? कछुआ पूछने लगा सबसे, परन्तु किसी को कुछ पता ही न था की जाना कहाँ है प्रभु चरण ढूँढने?
वह खोजता रहा, खोजता रहा आखिर एक दिन उसे कोई भक्त मिला,जिसने उस नन्हे को अनन्त क्षीर सागर मे जाने को कहा और वहाँ की राह भी सुझाई, एक तो बेचारा ठहरा कछुआ, कछुए की धीमी चाल…. धीमी चाल से ही चल पड़ा…..
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चलते चलते सागर तट तक भी पहुँच ही गया, फिर तैरने लगा बढ़ता गया बढ़ता गया और आखिर पहुँच गया वहांँ जहांँ प्रभु शेष शैया पर विराजमान थे।

शेष जी उन को अपने तन पर सुलाये आनन्द रत थे और लक्ष्मी मैया भक्ति स्वरूप हो प्रभु के चरण दबा रही थी, कछुए ने प्रभु चरण छूने चाहे पर शेष जी और लक्ष्मी जी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया, बेचारा तुच्छ अशुद्ध प्राणी जो ठहरा…

बेचारा….उसकी सारी तपस्या, अधूरी ही रह गई प्रभु सिर्फ मुस्कुराते रहे और यह सब देखते नारद सोचते रहे कि प्रभु ने अपने भक्त के साथ ऐसा क्यों होने दिया?

……समय गुज़रता रहा, एक जन्म में वह कछुआ केवट बना, प्रभु श्री राम रूप में प्रकटे, मैया सीता रूप मे और शेष जी लखन रूप मे प्रकट हुए, प्रभु आये और नदी पार करने को कहा।

पर केवट बोला; पैर धुलवाओगे हमसे तो ही पार ले जायेंगे हम, कहीं हमारी नाव ही नारी बन गई अहिल्या की तरह, तो हम गरीबों के परिवार की रोटी ही छिन जायेगी।

और फ़िर शेष जी और लक्ष्मी जी के सामने ही केवट ने प्रभु के चरण कमलों को धोने, पखारने का सुख प्राप्त किया।

……समय फिर गुज़रा,कछुआ अब सुदामा हुआ, प्रभु कान्हा बने, मैया बनी रुक्मिणी और शेष जी बलदाऊ रूप धर आये,
और एक दिन सुदामा बना वह नन्हा कछुआ, प्रभु से मिलने आया, धूल धूसरित पैर, कांटे लगे, बहता खून, कीचड सने और क्या हुआ?
प्रभु ने अपने हाथों से अपने सुदामा के पैर धोये, रुक्मिणी जल ले आई और बलदाऊ भी वहीं बाल सखाओं के प्रेम को देख आँखों से प्रेम अश्रु बरसाते खड़े रहे,हरि कथा अनन्ता,अनन्त हरि धन्य है ।
सतयुग में ध्यान
त्रेता में यज्ञ
द्वापर में पूजन
और कलयुग में महामंत्र का जप करने मात्र से ही जीवों का उद्धार हो जाएगा
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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