आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे कि कोई किसी के सुख दुख का दाता नही है सब कर्मफल का परिणाम है-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24
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काहु ना कोउ सुख दुख कर दाता।
कोई लाख चाहे किसी को सुख दुख दे नहीं सकता, क्यों ?
निजकृत कर्म भोग सब भ्राता॥
कितने ही घुमावदार रास्ते से क्यों न मिले, पर फल उसी को मिलेगा जिसका कर्म है।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभ अशुभम्।
अहंभाव न रहे, कर्ताभाव चला जाये तो क्रियणमान से बचा जा सकता है, ज्ञान हो जाये तो संचित से बचा जा सकता है, पर प्रारब्ध से बचा नहीं जा सकता, प्रारब्ध तो भोगना ही पड़ेगा।
धनुष पर चढ़ा तीर क्रियणमान है, तरकश में रखे तीर संचित हैं, पर जो तीर चल चुका है, वह प्रारब्ध है, वह कैसे रोका जाये ?
कैकेयी माँ का क्या दोष है ? रामजी स्वयं वन आये हैं । दशरथजी वर देने में निमित्त बने हैं, कैकेयी जी प्रेरणा देने में निमित्त बनी हैं, मंथरा भड़काने में निमित्त बनी है, सरस्वतीजी बुद्धि फिराने में निमित्त बनी हैं।
पर सरस्वतीजी को किसने प्रेरित किया ?
रामजी ने।
यों लक्ष्मणजी ने कर्म का मार्ग रखा ।
अब ज्ञान मार्ग से समझा रहे हैं-
सपनें होइ भिखारी नृपतुंग रंकु नाकपति होई ।
जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियें जोई ॥
यह समस्त दृश्यजगत सत्य नहीं है, स्वप्न मात्र है। स्वप्न से जाग जाने वाले को न लाभ है न हानि है।
अर्थात इस दृश्य जगत को कल्पना रहित और विकार रहित होकर देखोगे तो प्रत्येक जन्म के पूर्व कर्म अर्थात सत्य जगत दिखाई देगा और लोगों की वास्तविक रूप पता लगेगा।
श्रीराम को अपने पूर्वकर्मों का भान है, इसलिए सब इन्हें निमित्त मात्र दिखाई दे रहे हैं।वे किसी को दोषी नहीं मान रहे हैं।उसे वे दैव विधान अर्थात पूर्व कर्मों का फल मानते हैं।
अंत में तीसरा मार्ग, यह सब भगवान की लीला चल रही है, दुख का कोई कारण नहीं है । यहाँ राजा राजा नहीं है, रंक रंक नहीं है, सुखी सुखी नहीं है, दुखी दुखी नहीं है, सब अपना पात्र निभा रहे हैं । जो दिख रहा है, सब नाटक चल रहा है।
भगत भूमि भुसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल।
करत चरित धरि मनुज तन सुनत मिटहिं जग जाल॥
वही कृपालु श्री रामचन्द्रजी भक्त, भूमि, ब्राह्मण, गो और देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके लीलाएँ करते हैं, जिनके सुनने से जगत् के जंजाल मिट जाते हैं॥