आध्यात्मिक ज्ञान मे आज आप देखे दो गरीब किसानों की कहानी इस लेख को पूरा पढने के लिए नीचे दीगई लिक पर क्लिक करें-डा०-दिनेश कुमार शर्मा एडीटर एम.बी.न्यूज-24**

पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।

अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया।

भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, *”अब तुम्हें क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं।”*

भगवान की बात सुनकर उनमें से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, *” हे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”*

उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, *”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।”*

भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, *”भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारों तरफ से पैसा ही पैसा मिले।”*

अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान ने उसकी बात सुनी और कहा, *”तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”*

उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, *”तुम बताओ तुम्हें क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?”*

उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, *”हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपर मेहनत से काम करके मैंने अपने परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पर कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे, भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी-कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था,  और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”*

भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, *”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।*

किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, *”हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।”*

भगवान ने कहा, *“तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”*

अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।

पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारों तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।

और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।

*_हर बात के दो पहलू होते हैं_*

*सकारात्मक और नकारात्मक*

*अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा का भाव रखिये !!!*
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*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

मंगलमय प्रभात
स्नेह वंदन

👉 देने से ही मिलेगा

*किसी को कुछ दीजिए या उसका किसी प्रकार का उपकार कीजिए तो बदले में उस व्यक्ति से किसी प्रकार की आशा न कीजिए। आपको जो कुछ देना हो दे दीजिए। वह हजार गुणा अधिक होकर आपके पास लौट आवेगा। परन्तु आपको उसके लौटने या न लौटने की चिन्ता ही न करनी चाहिए। अपने में देने की शक्ति रखिए, देते रहिए। देकर ही फल प्राप्त कर सकेंगे। यह बात सीख लीजिए कि सारा जीवन दे रहा है। प्रकृति देने के लिए आप को बाध्य करेगी। इसलिए प्रसन्नतापूर्वक दीजिए। आज हो या कल, आपको किसी न किसी दिन त्याग करना पड़ेगा ही।*

*जीवन में आप संचय करने के लिए आते हैं परन्तु प्रकृति आपका गला दबाकर मुट्ठी खुलवा लेती है। जो कुछ आपने ग्रहण किया है वह देना ही पड़ेगा, चाहे आपकी इच्छा हो या न हो। जैसे ही आपके मुँह से निकला कि ‘नहीं, मैं न दूँगा।’ उसी क्षण जोर का धक्का आता है। आप घायल हो जाते हैं। संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो जीवन की लम्बी दौड़ में प्रत्येक वस्तु देने, परित्याग करने के लिए बाध्य न हो। इस नियम के प्रतिकूल आचरण करने के लिए जो जितना ही प्रयत्न करता है वह अपने आपको उतना ही दुखी अनुभव करता है।*

*हमारी शोचनीय अवस्था का कारण यह है कि परित्याग करने का साहस हम नहीं करते इसी से हम दुखी हैं। ईंधन चला गया उसके बदले में हमें गर्मी मिलती है। सूर्य भगवान समुद्र से जल ग्रहण किया करते हैं उसे वर्षा के रूप में लौटाने के लिए आप ग्रहण करने और देने के यन्त्र हैं। आप ग्रहण करते हैं देने के लिए। इसलिए बदले में कुछ माँगिए नहीं। आप जितना भी देंगे, उतना ही लौटकर आपके पास आवेगा।
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