*💐आज की प्रेरणादायक कहानी💐*
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एक बरगद के पेड़ पर तोते के एक जोड़े ने अपना घोंसला बनाया। मादा तोते ने घोंसले में दो अंडे दिए। कुछ दिनों बाद अंडों में से दो चूजे निकले। उन नए तोतों के माता-पिता ने उनकी अच्छी देखभाल की। कुछ हफ्तों के बाद, नए तोते छोटी- छोटी उड़ान भरना भी सीख गए।
नर पंछी ने कहा, “हमने अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की है। हमने उन्हें अच्छा भोजन भी दिया है। वे साथ- साथ खेले हैं, साथ-साथ उड़ना सीखे हैं। अब वे अपना ख्याल खुद रख सकते हैं, हमें धीरे-धीरे उन्हें आत्मनिर्भर बनने देना चाहिए ।”
हर सुबह माता-पिता पक्षी अपने बच्चों के लिए भोजन लाने के लिए बाहर जाते थे। फिर वे शाम को अपने छोटे बच्चों के लिए भोजन लेकर लौटते। यह दिनचर्या कुछ समय तक चली।
एक शिकारी कुछ समय से तोतों की यह दिनचर्या देख रहा था। उसे पता चला कि माता-पिता पंछी सुबह निकल जाते हैं। उनके चले जाने के बाद उस शिकारी ने तोतों के बच्चों को पकड़ने का फैसला किया। योजना के अनुसार उस शिकारी ने तोतों के बच्चों को पकड़ लिया। तोतों के बच्चों ने खुद को शिकारी के चंगुल से छुड़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन दोनों बच्चों में से एक तो शिकारी से बच कर दूर उड़ गया परंतु दूसरे तोते के बच्चे को शिकारी पिंजरे में बंद करके अपने घर ले गया।
“मैंने दो तोतों के बच्चों को पकड़ा था लेकिन एक तोते के बच्चे को खो दिया।” शिकारी को अफसोस हुआ!
शिकारी के बच्चे तोते के साथ खेलते थे। बहुत जल्द शिकारी के घर का तोता कुछ शब्द बोलना सीख गया। शिकारी के बच्चों ने अपने पिता से कहा, “पिताजी, हमारा तोता कुछ शब्द बोलना सीख गया है।”
दूसरा तोते का बच्चा, जो शिकारी से बचकर दूर उड़ गया था उसने एक आश्रम में शरण ली। आश्रम में कुछ साधु रहते थे। उन्होंने उस तोते के बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। वो तोते का बच्चा वहीं बस गया। वो रोज साधूओं के प्रवचन सुनता। वो उनमें से कुछ शब्द बोलना भी सीख गया।
एक दिन एक पथिक, शिकारी की कुटिया के पास से गुजर रहा था। वह थका हुआ था तो वह झोपड़ी के पास विश्राम करने बैठ गया। वहाँ उसने तोते की आवाज सुनी। तोता बोल रहा था, “मूर्ख, तुम यहाँ क्यों आए हो? मैं तुम्हारा गला काट दूँगा।”
ऐसे बुरे शब्द सुनकर पथिक को बहुत अफ़सोस हुआ। वह फौरन उठकर आनन-फानन में वहाँ से चला गया। कुछ देर चलने के बाद वह उस आश्रम में पहुँच गया। आश्रम वाला तोता वहाँ पास एक पेड़ पर बैठा था।
तोता बोला, “स्वागतम! इस आश्रम में आपका स्वागत है पथिक। इस जंगल में हमारे पास बहुत सारे अच्छे फल हैं। जो मन करे खाओ। यहाँ के भले लोग आपके साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।”
पथिक हैरान रह गया। उसने उस तोते से कहा, “मैं एक शिकारी की झोपड़ी के पास एक तोते के बच्चे से मिला था। वह बहुत बुरे बोल बोल रहा था इसलिए मैं तुरंत वहाँ से निकल गया। अब मैं तुमसे मिल रहा हूँ पर तुम तो बहुत अच्छा बोलते हो। तुम तो एक दयालु और कोमल हृदय वाले प्राणी प्रतीत होते हो। तुम और वो दूसरा तोता दोनों समान पक्षी हो फिर भी तुम दोनों की भाषा में इतना अंतर क्यों है?”
इस कथन से आश्रम के तोते ने अनुमान लगाया कि दूसरा तोता कोई और नहीं बल्कि उसका भाई ही होगा। आश्रम के तोते ने कहा, “पथिक, दूसरा तोता मेरा भाई ही है। लेकिन हम दो अलग-अलग जगहों पर पले हैं। मेरे भाई ने शिकारी की भाषा सीख ली है लेकिन मैंने पवित्र लोगों की भाषा सीखी है। यह संगत है जो हमारे शब्दों और कार्यो को आकार देती है।”
_*वातावरण क्या है?* जब हम मंदिर जाते हैं तो हमें शांति का अनुभव होता है, जब हम पुलिस थाने/अस्पताल में होते हैं तो बेचैन हो जाते हैं, और इसी प्रकार अलग-अलग वातावरण के अनुसार हमारी मनःस्थिति बदलती जाती है।
_क्या आपने कभी इस बदलाव पर ध्यान दिया?_
*एक विराम लें, गौर करें और* हमारे विचार वातावरण बनाते हैं और यह बदले में हमारे कार्य यानी व्यवहार को प्रभावित करते है।
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*राम रक्षा स्तोत्र मंत्र*
*राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे । सहस्त्रनाम ततुल्यं रामनाम वरानने ।।*
*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*